To explore the words.... I am a simple but unique imaginative person cum personality. Love to talk to others who need me. No synonym for life and love are available in my dictionary. I try to feel the breath of nature at the very own moment when alive. Death is unavailable in this universe because we grave only body not our soul. It is eternal. abhi.abhilasha86@gmail.com... You may reach to me anytime.
खतरा होता है...
प्रेम तो प्रेम है
लड़की की इच्छा
मैं दोषी हूँ
ओ पुरुष!
प्रेम है प्रेम सा
पहली बार
जब पहली बार निकलो यात्रा पर
तो कुछ भी न रखना साथ
चाकू, घड़ी, छतरी, टिश्यू पेपर, टॉयलेट सोप...
आदि कुछ भी नहीं
कहीं अगर ले लिया
इन सामानों से भरा झोला
तो कंधे थक जाएंगे
और तुम्हें नहीं मिलेगा
सफ़र का भरपूर मज़ा.
मैं भी तैयारी में हूँ
एक अनन्त यात्रा की
जो बिल्कुल पहली बार होगी
और कुछ नहीं होगा साथ
सिवाय तन पर एक सफ़ेद लिबास के...
कविता का अस्तित्व
जीवित शिलालेख
उस रोज़ मर गयी थी माँ
लोग सांत्वना दिए जा रहे थे,
'सब ठीक हो जाएगा
मत परेशान कर ख़ुद को...'
कुछ भी ठीक नहीं हुआ
क्योंकि कुछ ठीक होने वाला नहीं था
वो देह भर गरीबी अर्जित कर
कूच जो कर गयी थी.
ऐसे ही जब मरे थे बापू
कुछ भी नहीं था तब
सांत्वना भी नहीं!
काकी, ताई, दाऊ, दद्दा...
सब इसी तरह जाते रहे.
ग़रीब के हिस्से आता ही क्या है
अलावा जिल्लत के?
अब मुझे मौत से डर नहीं लगता,
रात के अँधेरों से डर नहीं लगता,
दर्द की नग्नता से डर नहीं लगता,
मेरे भीतर का मौन कचोटता नहीं है मुझे
मैं वो जीवित शिलालेख बन चुकी हूँ
जिस पर बादल बरसकर भी नहीं बरसते,
हवा का ओज कौमार्य भर देता है
निष्प्राण देह में,
काल भृमण करता है मुझ पर
मेरी उम्र बढ़ाने को...
नेह का दस्तख़त
सब कुछ भूलने से पहले
मन किया
कि सब कुछ याद कर लूँ
बहुत ज़्यादा
एक बार फ़िर
शायद कोई बात मिल जाए ऐसी
कि मन कसैला हो जाए तुमसे
...सब कुछ ढूंढ लिया
फ़िर मिला,
'धत्त...पागल होते हैं वो
जो पावन मन के प्रेम की
सुंदरता को खोते हैं
मुझे तितली की सुंदरता चाहिए
तो किताबों में क़ैद करना कैसा
...उड़ने दूँ उन्मुक्त होकर
उसे ख़ुद के साथ'
मैं, तितली
और नेह का वो धागा
जो एक अदद हस्ताक्षर है
मन के उजलेपन का!
एक पिता की चुपचाप मौत
मूक हो जाते हैं उस पिता के शब्द
और पाषाण हो जाती है देह
जो अभी-अभी लौटा हो
अपने युवा पुत्र को मुखाग्नि देकर.
न बचपन याद रह जाता है
न अतीत की बहँगी में लटके सपने
आँखें शून्य हो जाती हैं
ब्रह्मांड निर्वात,
बूँद-बूँद रिसता है दर्द का अम्ल
हृदय की धमनियों से,
सब कुछ तो है
और कुछ भी नहीं है,
फफक पड़ती है मेरु रज्जु
किस पर झुकेगी बुढ़ापे में,
रिस जाती है फेफड़ों की नमी
किन हाथों में थमाएगा दवा का पर्चा,
सहसा ही निकाल फेंकता है
आँखों पर लगा चश्मा
कि बचा ही क्या दुनिया में देखने को;
अंत्येष्टि कर लौटा पिता
मरघट हो जाता है स्वयं में
हर आग चिता की तरह डराती है उसे,
चुकी हुई रोटी की भूख
चिपका देती है उसकी अंतड़ियाँ,
पल भर में लाश बने उस देह की आग ठंडी होने तक
मर चुका होता है पिता भी;
बची-खुची देह भी समा जाना चाहती है
किसी कूप में
जब जमाना करने लगता है
पाप और पुण्य का हिसाब-किताब.
मेरी पहली पुस्तक
http://www.bookbazooka.com/book-store/badalte-rishto-ka-samikaran-by-roli-abhilasha.php
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इस प्रेम कहानी से प्रेरित मेरी कविता "प्रेमी की पत्नी के नाम" ९०,००० से अधिक हिट्स के साथ पहले पायदान पर आ गयी है. जो "ओ लड़क...
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