आज क्रिसमस है

'सुनो आज की चाय हम साथ नहीं पी सकते क्या...एक समय, एक ही मेज पर जिसका एक हिस्सा तुम अपने लैपटॉप के लिए रखते थे और दूसरा मैं यूं ही मोबाइल पर उंगलियां फिराते हुए तुम्हें कनखियों से ताकने के लिए रख छोड़ती थी, हूबहू एक ही स्थिति में बैठे हुए...याद है पिछले साल...?' मेरा संदेश अग्रसारित होते ही त्वरित उत्तर आ गया.
साथ ही एक चित्र भी... वही मुस्कुराता हुआ चेहरा, मेज की उसी छोर पर...जैसे अपलक मेरी आंखों में देखते हुए दिल में उतर रहा हो...और एक चाय का प्याला मेरे लिए...
शहर बदल गया तो क्या हुआ सर्द रातों का गर्म अहसास तो अब तक वही है.

मेरी पहली पुस्तक

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