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चिरैया सी लड़कियाँ

मुझे लड़कियाँ बेहद पसंद है

मूंज की लड़कियाँ

कांस की लड़कियाँ

होती हैं कहीं कहीं ताश की लड़कियाँ

मिट्टी की लड़कियाँ

गिप्पल की लड़कियाँ

बिन सूरमे, लाली के सिम्पल सी लड़कियाँ

देर तक इन लड़कियों को देखते रहना

मुझे पसंद है,

ठहर कर देखना

टिक कर देखना

उनकी हर अदाओं को आँखों में क़ैद करना

कैसे जीती है लड़कियाँ

यह सोचना पसंद है

किस बात पर कैसे प्रतिक्रिया करती है लड़कियाँ

मुझे समझना पसंद है

लड़की होकर उन्हें

लड़की होने का अहसास होता है क्या

यह सवाल मुझे झकझोरता है

उनके बारे में और सोचने को मजबूर करता है

फिर सोचती भी हूँ कि

मैंने बस मालीवाल, ईरानी या रनौत को ही नहीं देखा

मैंने तो दौड़ते देखा है

कोटेश्वर मंदिर से चिरबटिया तक सरोजनी को

अल्ट्रा मैराथन में मेडल के लिए, और

बेरेगाड़ से नारायणबगड़ तक

पुलवामा में शहीद हुए जवानों को

श्रद्धांजलि देने के लिए

मैंने देखा है

बछेंद्री और किरन को, इंदिरा नूयी को

ये वो लड़कियाँ हैं जो ढ़क लेती हैं

सूरज को अपने हाथों से

कोई फर्क नहीं पड़ता उनको

सूरज डूब रहा है या उग चुका



मेरी पहली पुस्तक

http://www.bookbazooka.com/book-store/badalte-rishto-ka-samikaran-by-roli-abhilasha.php