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नाॅट फार यूज

 हर प्लीज का, मतलब रिस्पेक्ट नहीं होता

कुछ प्लीज किसी को मजबूर करने के लिए भी

'यूज़ किए जाते हैं

'नो' कहना सुरक्षित रखो मतलबी बातों के लिए.

आधी रात को 'सिगरेट पीने की इच्छा'

करने वाले दोस्त का 'प्लीज’

अगर तुम्हें मन न होने पर भी

दस नब्बे चौराहे के एकाँत पर खड़ा कर सकता है

तो मत भूलो कि एक दिन

बलात्कारी की तरह कटघरे में भी ला सकता है

माँ हमारी आधी गल्तियों पर पर्दा डालती हैं,

पिता या तो अति भावुक होते हैं या फिर अति क्रोधी

दोस्त आधे इधर होते हैं आधे उधर

सिब्लिंग, वो तो ख़ुद ही उसी में डूबे हैं

सोच रहे हो हेल्प किससे लें?

तुम्हारा अपना विवेक कहाँ है?

आधी रात को सिगरेट फूँकने से लेकर

वोट के अधिकार तक अपने निर्णय स्वयं करो


सोचो इलेक्टोरल बॉड्स को जानने का

हमारा अधिकार है या नही

सोचो यदि केजरीवाल, गुनहगार है

तो कितनी देर में पहुँचा सलाखों के पीछे

सोचो शिक्षित प्रत्याशियों के नाम पर

आम सहमति क्यों नहीं बनती

सोचो वोट एक पार्टी के नाम पर लेकर

जूते दूसरी पार्टी के चाटते हैं

सोचोगे कैसे

तुम्हें तो बस सिगरेट, साँप, लड़की, में उलझना है

तुम्हें तो बस यह सोचकर मरना है

कि अकेले मुझे खप कर क्या ही करना है


एल फाॅर लिसेन

 



तुम एन्ड्रायड पर लिखो

लोग आई फोन पर पढ़ें

गोया झोपड़ी की चीख

महलों में इको करे


यह सोशल एनेस्थीसिया से

बाहर आने का समय है


भागना नहीं है

न तो प्रश्नों से

न ही स्वयं से


तुम्हें पढ़ना

अब रील्स स्क्रॉल करना बंद, सर्वे से कमाना शुरु 


मैं तुम्हें पढ़ती रहूँ

कभी अपने बिस्तर की सिलवटों बीच सिमटकर

कभी सूर्य नमस्कार करते हुए

कभी मंदिर की सीढ़ियों में

कभी दातुन फिराते हुए छज्जे पर

कभी कप में चाय उड़ेलते हुए स्लैब पर

कभी दफ़्तर के रास्तों में

कभी लंच की गप शप पर ठिठककर

कभी छुट्टियों में समय भर पसरकर

कभी मनाली लेह मार्ग के तंगलंगला दर्रे पर

कभी बादलों के घर में उड़ते उड़ते

कभी बुर्ज खलीफा की छाँव में

कभी जीवन के ठहराव में

कभी मृत्यु के पड़ाव में


....

कभी भी कहीं भी

बस इतने ही अनायास तुम आ जाते हो

जैसे बोल रहे हो कानों में

'अभी अभी कुछ लिखा है

बताओ भला कैसा लिखा है'


तुम्हारे शब्दों में जकड़ी हुई मैं

तुम्हारे शब्दों में स्वतंत्र होती हूँ

टार्चर हो सकने की सहनशक्ति

१• कुछ स्त्रियाँ होती हैं

बसंती सी

नाचती रहती हैं कुत्तों के सामने,


२• कुछ पुरुष होते हैं

गब्बर से

चलाते रहते हैं गोली मनोरंजन के लिए


३• कुछ स्त्रियां गब्बर भी होती हैं


४• कुछ पुरुष मगर बसंती नहीं होते


५• कोई भी पुरुष बसंती नहीं होता


आइये करते हैं चुनाव


पहला सही, दूसरा सही,

पहला और तीसरा सही,

चौथा सही पाँचवा सही;



अश्लीलता फूहड़ता और

हिंसा के दौर में

चुनाव अच्छे या बुरे का नहीं रहा

'टार्चर हो सकने की सहनशक्ति' का है.


तुम केसरिया हो


 •तुम प्रिय

तुम प्रियता

सांसारिक निजता

हिय दृष्टा हो


तुम अंतर्दिष्ट सखा हो


तुम अतीत का

नाम जप

तुम स्नेह का

प्रतीक्षित तप


मैं हूँ सूर तुम दृष्टा हो


तुम फाग

तुम ही फाग राग

अनछुआ रंग

कुसुमित पराग


मैं श्याम कमल तुम केसरिया हो


कविता


•कविता

मन की चारदीवारी से निकला

इमोशनल कंटेंट


•कविता

एक परिभाषा

‘टेम्पोरेरी’ की


•कविता

सरेंडर है प्रेम का


•कविता

लिखवाती है मुझसे

ख़ुद को


•कविता

रुचती है तो

चुभती भी है


 •सबसे अच्छी वह कविता लिखी

जो अब तक लिखी ही नहीं गयी

प्रेम का टाइम कैप्सूल

 



•मेरी कविताएँ

तुम्हारे लिए लिखी गयी

मेरी चिट्ठियाँ हैं

पायी जायेंगी

युगों से कल्पों तक

बनी रहेंगी

मिटती सभ्यताओं में भी

सुरक्षित रहेंगी

बम, मिसाइल से

नहीं पकड़ पायेगा इन्हें

ड्रोन और रडार


लिखती हूँ

हर हिचकी पर एक कविता

मेरी स्याही का रंग

उसी तासीर का है


हमें जोड़े रखने वाला नेटवर्क

एक हिचकी


जाने कौन-कौन

पढ़ रहा होगा

भविष्य में प्रेम अपना

जाने कितनी तीव्रता का

विस्फोट हो

जब आम किया जाये

अपने प्रेम का

टाइम कैप्सूल


बस तुम यूँ ही रहना

मेरे सैटेलाइट में

जब चाहूँ तुम्हें देख सकूँ


प्रेमी की पत्नी के नाम

 

कुछ भी नहीं सोचती मैं

तुम्हारे बारे में

न ही लेती हूँ

कोई इल्ज़ाम अपने सर.

न सुन पायी उसके मुँह से

कभी अपना नाम सरे राह

न ही हुई कभी हमबिस्तर

जब-जब तुम्हें लगा

कि तुम झमेलों में हो

मैं शिकन हटाती रही

उस माथे की

जिस पर बोसा

बस तुम्हारा हुआ.

तुम्हारा अधूरा प्रेम बनकर

नहीं मिला कभी वो मुझे,

वरन एक शिशु की तरह

जिसे माँ चाहिए

एक विद्यार्थी बनकर

जो शिक्षा की खोज में हो

उसे बुद्ध बनना है प्रेमी नहीं

वो मुझ तक

पुरुषार्थ लेकर नहीं आया,

अपने अंदर का पुरुष

हर बार

वह छोडकर तुम्हारे पास

आया यहाँ

जैसे नदी का पानी

जाता तो है समंदर तक

पर नदी लेकर नहीं

तुम भीगती हो उसमें

मैं तो बस भागती हूँ

हमारी कहानी में

कोई इच्छा नहीं है

कोई चेष्टा नहीं है

प्रत्याशा भी नहीं

एक संयोग से उपजी हुई

कोई पृष्ठभूमि जैसा

कुछ घटा हमारे मध्य

जैसे मिल जाती है

प्रतीक्षा की पीड़ा

किसी-किसी देहरी को

कैसे बाँध सकती हो तुम मुझे

घृणा के बंधन में

मेरी और तुम्हारी तुलना ही क्या

तुम तो

मेरे प्रणय काव्य के सौंदर्य का प्रत्येक भाग भी

स्वयं पर अनुभव कर रही होगी

और वो मेरे लिए

मेरे सुख के दिनों की कविता

एवं पीड़ा में प्रतीक्षा बन पाया

बस इतना सा आत्मसात किया मैनें उसे

अपने भीतर

फिर भी

वो कमीज पर लगा

कोई लिपिस्टिक का दाग नहीं

जो धोकर गायब कर दूँ,

हर शब्द में भाव बनकर

समाहित हो गया है मुझमें

मैं नहीं माँगने आयी किसी दरवाजे पर

‘आज खाने में क्या बना लूँ'

कहने का अधिकार

तुम भी मत चाहना कि मैं

उस पर उड़ेल दूँ 'विदा का प्यार’


मेरा भविष्य

मेरी देह के आकर्षण पर नहीं

शब्दों की संगत पर है

अश्रुओं का उल्कापात नहीं

पलाश की अनल बरसने दो

उसके लाये हुए हर पारिजात को

तुम्हारे चरणों की रज मिले


संक्षेप में जीवन

•जन्म क्या है
“ब्राँड न्यू एप का लाँच”

•बचपन क्या है
टिक टाक वीडियो

•बुढ़ापा क्या है
"पुराने एप का नया लोगो”

•कर्म क्या हैं
“ट्रैश”

•मृत्यु क्या है
“ट्रैश का ऑटो डिलीट”

•संसार क्या है
“ईश्वर की लैबोरेटरी”

हमारे रास्ते


यूँ ही अलग अलग रास्तों से
फिर कभी मिल जायेंगे

तुम जम्हाई बोना मेरे चेहरे पर
अपने पास बिठा लेना
हम ख़्वाब में भी बस तुम्हें
हाँ तुम्हें गुनगुनायेंगे

वो जो कविता गायी थी
तुमने एक रोज मेरे लिए,
उसके सुरों से एक सड़क बनायी है
उसके इर्द-गिर्द तन्हाई बिछायी है
हम चलेंगे एक दिन उस सड़क पर
साथ-साथ

यूँ ही अलग अलग रास्तों से
फिर कभी हम मिल जायेंगे

संगीत के सादा नोट की तरह

प्रेम में मैं

तुम्हें पढ़ा ही कितना है मैंने अमृता
मग़र कहीं होतीं तुम मेरे आसपास
तो यक़ीनन तुम्हें प्रेम कर बैठता
इतना प्रेम जितना इमरोज भी न कर पाया हो
मेरी माँ की कोख ने मुझे कहाँ
प्रेम को जन्म दिया था
चढ़ते घाम का हर घूँट
ढ़ुलकती चाँदनी का रूप
उदरस्थ किया मैंने
प्रेम का नाम लेकर
सर्द पहाड़ों पर फहरायी है पताका
प्रेम की हवा गुजारने को मैदानों में,
मेरे भीतर का मैं नामालूम सा हूँ
तुम चाहो तो खोज लो मुझे
देवदारों से चिनारों तक
शीत, उष्ण, बयारों तक

नपुंसक

मत भांजो लाठियाँ 
नपुंसकों पर
एक दिन ये
स्वयं ही मर जायेंगे,
मत बाँधो 
इनकी पीठ पर
आलोचनाओं को बोझ
क्योंकि जब ये जायेंगे
तो ले जायेंगे साथ अपने
जनन की आशा

प्रार्थनायें

मेरी प्रार्थनाओं में
कभी नहीं आये
मंदिर-मस्जिद,
गिरजाघर-गुरुद्वारे
बल्कि इन स्थानों पर
पनपी हैं याचनायें
मुझे प्रार्थनाएं आयीं
वहाँ-वहाँ
जहाँ-जहाँ
लिखा मैंने
कोई प्रेम गीत
तुम्हारे साथ
तुम्हारे लिए

वो

नज़्म में
लिपटकर
रोटियाँ नहीं आतीं

कोई तो जगह
बता दो साहब
जहाँ बेची,
बेटियाँ नहीं जाती

है वो कौन सा
यौम-ए-आशूरा
जब काटी
बोटियाँ नहीं जाती

दिल होता
तो पिघलता
इन नामुरादों का
युग बदलता
और खींची
द्रोपदियों की
चोटियाँ नहीं जाती

हाथी नहीं हैं ये
कुत्ते भी नहीं हैं
नथुनों में
इनके रेंगने
चीटियाँ नहीं जातीं

जीवन का सत्य• भाग (1)

हम मानने में
विश्वास रखते हैं
सच मानना हो,
किसी रिश्ते को मानना हो
अथवा गणित का एक्स
हमने माँ के गर्भ में
स्वयं को नहीं देखा
पर सभी ने जिन्हें माँ कहा
हमने माना
पिता ने हमें
जन्मते नहीं देखा
परिचारिका ने मुझे
उनकी गोद में डालते हुए
मुँह मीठा कराने को कहा
पिता जी ने मान लिया;
इस मानने में
मन ने सदैव
प्रश्न नहीं प्रेम किया,
संदेह नहीं
विश्वास किया

क्रमशः

चंद क्षणिकाएँ

 



•प्रेम

ऐश्वर्य के पाँव में पड़े

छालों का नाम है


•नदियाँ धरा का सौंदर्य हैं

और पड़ाड़ो तक पहुँचने का

सुगम मार्ग


•दर्द के मार्ग पर

चलते हुए

प्रिय का प्राकट्य होता है


•कोई तो है

जो इस सृष्टि पर

दृष्टि रखे है


•प्रेम में

तुम्हें याद करना ही

मेरे प्रेम की अधिकतम सामर्थ्य है


जिज्ञासा

रात क्या है?
शाम की पाती
जो सुबह तक
ख़ुद ही
चलकर आती

सुबह क्या है?
ईश्वर के
विश्वास का
टूटता हुआ तारा

विश्वास क्या है?
किसी की
परेशानी सुनकर
हाथों का यकायक
एक-दूसरे से जुड़ जाना

हाथ क्या है?
हमारी मौजूदगी का
विस्तार
जिसके भीतर
दुनिया है हमारी

दुनिया क्या है?
उम्र क़ैद
काटने के लिए
गुजर करने को
मिली जगह

उम्र कैद क्या है?
विंडो सिल पर
कप के
निशान के भीतर
जमी हुई धूल

चाय क्या है?
मैं और मेरे तुम,
मौन सा झरका,
बिछड़ने से
ठीक पहले की मिठास

प्रेम क्या है?
किसी अछूत द्वारा
मंदिर के भीतर
लगे घंटे का
पहला स्पर्श

स्पर्श क्या है?
वह पल जब
अलग हो रहा होता है 
माँ की गर्भनाल से
कोई शिशु

चाय के बहाने प्यार

आओ उफानते हैं
केतली भर प्यार आज
कविता दिवस के दिन
तुम मेरी बाहों में सोना
मैं सर रख लूँगी अपना
तुम्हारे सीने पर,
उबलते रहेंगे
हम दोनों के मन देर तक
पका लेंगे उसमें
प्यार, नोकझोंक,
तकरार की मीठी बातें
और छान लेंगे
एक दूसरे के मन में;
कड़वाहटें अलग करके

इंसान बनना है मुझे

माँ ने कृतज्ञ होना सिखाया

और यह भी सिखाया कि

नदी, वृक्ष, प्रकृति की तरह बनो

देना सीखो,

पशुओं की तरह बनो

अनुगामी रहो

अब उलझन में हूँ मैं

क्या इंसान नहीं बन सकती!

एक और सुझाव मिला

गीता का सार समझो,

ईश्वर कहता है

….

कदाचित कुछ नहीं कहता ईश्वर

अलावा इसके कि

कर्म प्रधान रहे

निर्णय स्वयं से हो और

संतुलन बना रहे

मेरा मरना

समय का सिंगारदान
काला हो चला है
सूख रही है मेरे कलम की स्याही
लिखने की मेज पर पड़ा
कप का निशान मिटता ही नहीं
मां कहती है,
मैं ज्यादा चाय पीने से मरूंगी
कितनी भोली है मां,
आज तक शायद ही
कोई डेथ सर्टिफिकेट बना हो
जिस पर मृत्यु का कारण
चाय पीना अंकित है,
जब इतने दर्द में जी गयी
मैं तो ज़हर से भी न मरूं;
मैं जब भी मरूंगी
आत्मा की भूख से मरूंगी...

मेरी पहली पुस्तक

http://www.bookbazooka.com/book-store/badalte-rishto-ka-samikaran-by-roli-abhilasha.php