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प्रियतम को पहली पाती

बार-बार अधरों की लाली
शर्माती और सकुचाती,
नेह निचोड़ लिखी जब हिय से
प्रियतम को पहली पाती:

मैं अक्षर सारे भूल गयी
संकेत ही बिम्ब बने मन के,
अरज कोई और भावे न
जब बोल बने बसन तन के,
उनके संग को ढूंढ रही
उन ढाई आखर की थाती,
फिर सारा प्रेम उड़ेल लिखी
प्रियतम को पहली पाती:

काया गोकुल मन वृंदावन,
तिरछी मुस्कान है मनभावन,
अँखियाँ बन्द करूँ दिखते
बस उनके नयन लुभावन,
आभा उनकी जिनसे सुंदर
उस चाँद को देखके हर्षाती,
किरणों को कलम बनाय लिखी
प्रियतम को पहली पाती.

बिना संबोधन वाला पहला ख़त

जब तुम्हारी पहली चिट्टी आयी थी
लिफाफे पर देखा था अपना नाम
एक सुंदर सी बड़ी लिखावट वाला
मुरझा सा गया था
उसका पीला रंग
मग़र तुम्हारे हाथों की खुशबू लेना नहीं भूले
ये जानते हुए भी
कि कितने ही हाथों ने छुआ होगा
तुम्हारे बाद भी,
हर अक्षर बचाकर खोल ही दिया था लिफाफा
और एक-एक कर निकाले थे
वो सारे दस्तावेज़,
जो तुम्हारी बुद्धिमत्ता, कुशलता और
अनुभवी होने के परिचायक थे
उन सबके बीच
तुम्हारा एक प्यारा सा चित्र,
तुम्हारी खुशबू बरसाते
काले रंग की स्याही से लिखे हुए चंद अक्षर
हम जानते थे
ये हमारे लिए हैं
फिर भी हम ढूंढते रह गए थे
तुम्हारा दिया हुआ एक प्यारा सा संबोधन
जो सिर्फ हमारे लिए होता
तुमने लिख भेजी थी हिदायतें
इस हिदायत के साथ
कि
तुम चाहो तो रख सकती हो
मेरी तस्वीर...अपने पास
तबसे आज तक
तुम्हारी वो तस्वीर
और खत वाला लिफाफा
घेरे हुए हैं
मेरे तकिए के नीचे की जगह
मग़र अब तक इंतज़ार है
उस सम्बोधन का!

मेरी पहली पुस्तक

http://www.bookbazooka.com/book-store/badalte-rishto-ka-samikaran-by-roli-abhilasha.php