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प्रियतम को पहली पाती

बार-बार अधरों की लाली
शर्माती और सकुचाती,
नेह निचोड़ लिखी जब हिय से
प्रियतम को पहली पाती:

मैं अक्षर सारे भूल गयी
संकेत ही बिम्ब बने मन के,
अरज कोई और भावे न
जब बोल बने बसन तन के,
उनके संग को ढूंढ रही
उन ढाई आखर की थाती,
फिर सारा प्रेम उड़ेल लिखी
प्रियतम को पहली पाती:

काया गोकुल मन वृंदावन,
तिरछी मुस्कान है मनभावन,
अँखियाँ बन्द करूँ दिखते
बस उनके नयन लुभावन,
आभा उनकी जिनसे सुंदर
उस चाँद को देखके हर्षाती,
किरणों को कलम बनाय लिखी
प्रियतम को पहली पाती.

5 टिप्‍पणियां:

आलोक सिन्हा ने कहा…

बहुत सुन्दर

दिगम्बर नासवा ने कहा…

बहुत सुन्दर भावपूर्ण मन को छूती पाती ...
कमाल के भाव ...

Roli Abhilasha ने कहा…

आभार श्रीमान जी, बहुत दिनों के बाद आपको ब्लॉग पर देखकर अच्छा लगा.

Roli Abhilasha ने कहा…

आभार आपका!

Swapan priya ने कहा…

Sundar Paati💞💞

मेरी पहली पुस्तक

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