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एंटी डिप्रेशन

कल एक उदास सी दोपहर में कुछ नहीं करने के इरादे से कुछ नहीं सोच रही थी मैं. जब कुछ नहीं करती हूँ तो घुप्प अंधेरी जगह पर बैठना पसंद करती हूँ. तभी फ़ोन की घण्टी बजी. मन न होते हुए भी उठाना पड़ा. इन दिनों जीने की ऐसी इच्छा जगी कि ख़ुद में एकाकीपन भर लिया ताक़ि मन को आवाज़ को समझ सकूँ. इनसे, उनसे, तुमसे...सब से दूर.
जैसे आत्मा है चार धाम
कर यात्रा जपें राम नाम.
"हेलो" जबरदस्ती की आवाज़ में बोल दिया.
"दीदी कुछ सुना तुमने?" उधर से हड़बड़ाई सी रुआंसी आवाज़ आई. मुझे पता था ये आगे क्या कहने वाली है क्योंकि सुशांत का दुःखद अंत कुछ देर पहले ही भाई ने बताया था. फ़िर भी मैंने अनजान बनते हुए कहा,
"मैं कैसे सुनूँगी...हुआ क्या?"
"वो सुशांत ने सुसाइड कर लिया…"
"कौन सुशांत?"
"अच्छा तुम टी वी नहीं देखती ना! वो धोनी में हीरो था"
"अच्छा"
"तुम्हें कोई अफ़सोस नहीं हो रहा क्या?"
"नहीं! मुझे सुसाइड करने वाले लोगों के साथ कोई सिम्पथी नहीं"
"क्यों किया होगा उसने ऐसा?"
"उसे ये नहीं पता होगा कि जहाँ सब कुछ ख़त्म हो जाता है शुरुआत वहीं से होती है"
"फ़िर भी क्या हुआ होगा...इतना बड़ा आदमी"
"डिप्रेशन...और शायद वो मन से बहुत छोटा था"
"आज मुझे तुम्हारी value समझ में आ रही है. कितने ही बार तुमने मुझे डिप्रेशन से बाहर निकाला है. मेरा भी सुसाइड करने का मन किया"
"अगली बार मन करे तो निकल लेना. मुझे पछतावा करने वाले बिल्कुल नहीं पसंद"
"अच्छा दीदी तुम्हें डिप्रेशन कभी नहीं हुआ या फ़िर सुसाइड करने का मन…?"
"तुम इमोशनली स्ट्रांग हो तो इस सच को स्वीकार कर रही हो...और मैं साइकोलॉजिकली स्ट्रांग हूँ अपना दर्द पी सकती हूँ पर लोगों के सामने हार कैसे मानूँ!"
"ऐसा क्या…?"
"हाँ अइसन बा" सैड पॉइंट से हैप्पी नोट तक आकर बात ख़त्म हो गई और अपने पीछे बहुत से सवाल छोड़ गई.
मुझे अंदर कुछ चोक होता सा लगा. खिड़की से बाहर देखा धूप बहुत थी...मुझे तुम याद आए. तुम्हारी किताब खोलकर बैठ गई पर यहाँ तो भीतर से भी ज़्यादा दर्द है. सच मुझे बहुत दर्द हो रहा था. पूरी रात मौसम के बदलते तेवर से लड़ती रही. आज 24 घण्टे बाद बहुत हिम्मत जुटाकर तुमसे आग्रह किया और तुमने उन्मुक्त होकर रंग बिखेर दिए शब्दों के. आज बहुत दिनों के बाद मेरा कमरा रोशनी से भर गया.
तुम्हें पता है एन्टी डिप्रेशन हो तुम मेरे.

जा ही रहे तो लौटकर मत आना!

मरना ही चाहते हो न तुम
तो आराम से मरो और पूरा मरो
रत्ती रत्ती मत मरना
मरने के प्रयास में कहीं जी भी मत उठना
इस दुनिया की नारकीय पीड़ा भोगने को दोबारा,
नहीं तो मार दिए जाओगे प्रश्नों की बौछार से,
तब तक मरो जब तक कि
ये न बता सको
रक्खा ही क्या है इस दुनिया में
ताकि आने वाली नस्लों को
सुनाई जाए शौर्य गाथा तुम्हारे नाम की
इतिहास के पन्नों में दर्ज़ हो जाओ तुम
एक तुम ही तो हो संतान आदम और हव्वा की
बाक़ी सब सरीसृप वर्ग के प्राणी हैं
किसी की कोख़ से कहां जन्में
कायिकी प्रवर्धन का परिणाम जो ठहरे;
तुम जी नहीं सकते तभी मरोगे
आत्मा तो उसी पल मार दी थी
जब जीने की जिजीवषा मरी थी,
तुम असीमित में सीमित हो
स्थूल में नगण्य हो
संभावनाओं की चौखट पर बैठे
वो द्वारपाल हो जो किसी स्त्री के
मैल से उत्पन्न विवेक शून्य प्रतीत होते हो,
अपने न होने में मगर
कभी होना न तलाशना
तुम वो भाव मारकर जा रहे हो
जिसे आत्मीयता की पराकाष्ठा कहते हैं.

मेरी पहली पुस्तक

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