स्पांसर











जीवन की भूख कब रही मेरे भीतर

एक भूख से भरा जीवन रहा

इन कोमल उंगलियों पर पड़ी कठोर गाँठे

याद दिलाती रहीं ध्रुव तारे को छू लेने की ज़िद

न तो हम प्यार से बैठे कभी पास-पास

न ही पास बैठकर प्यार कर पाये

बस अपनी अपनी खिड़कियों से मापते रहे

रात का एकाकीपन


और


तब तक चलता रहेगा यह सिलसिला

जब तक चाँद करता रहेगा स्पांसर मेरे दर्द को


9 टिप्‍पणियां:

Digvijay Agrawal ने कहा…

आपकी लिखी रचना "पांच लिंकों के आनन्द में सोमवार 07 अप्रैल 2025 को लिंक की जाएगी .... http://halchalwith5links.blogspot.in पर आप भी आइएगा ... धन्यवाद!

Priyahindivibe | Priyanka Pal ने कहा…

बहुत सुंदर

Anita ने कहा…

या फिर जब तक हम चाहेंगे

सुशील कुमार जोशी ने कहा…

सुन्दर

रोली अभिलाषा ने कहा…

बहुत आभार आपका!

रोली अभिलाषा ने कहा…

हाँ यह भी सही...

रोली अभिलाषा ने कहा…

आभार!

रोली अभिलाषा ने कहा…

बहुत बहुत आभार माननीय!

Onkar ने कहा…
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