तोहमत के गीले तौलिए से
दर्द में तपता बदन पोछते हुए
तुम्हारे शब्दों से उभरा
हर फफोला रिस रहा है,
उन मुस्कराहटों की सीरिंज में
अम्ल भरकर बौछार करते हुए
ताजा हो रहा है वो पल एक बार फिर
कि जो मन से कभी उतरा ही नहीं,
आज फिर ज़िन्दगी
हस्ताक्षर चाहती है
मौत के दस्तावेज पर,
काश प्रेम सायनाइड होता
तो स्वाद न बताना पड़ता!
To explore the words.... I am a simple but unique imaginative person cum personality. Love to talk to others who need me. No synonym for life and love are available in my dictionary. I try to feel the breath of nature at the very own moment when alive. Death is unavailable in this universe because we grave only body not our soul. It is eternal. abhi.abhilasha86@gmail.com... You may reach to me anytime.
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साइनाइड
...ओ लड़कियों
ओस की बूंद से भीगने वाली लड़कियों
कैसे सीखोगी तुम दर्द का ककहरा,
आटा गूंधते हुए
नेल पेंट बचाती हुई लड़कियों
ज़िन्दगी मिलती नहीं दोबारा,
फैशन के नाम पर निर्वस्त्र होकर
बेवजह की नुमाइश करती लड़कियों
क्यों बचाती हो खुद को
पायल, बिछुए से
महावर के रंग से
अगर लिपिस्टिक का रंग ही
महज टैग है तुम्हारे लड़की होने का
तो आजीवन आवारापन भोगो,
मत करो समझौता विवाह जैसे रिश्ते के नाम पर
मत बाँधो आत्मा के मोहपाश में खुद को
आजीवन देह बनाकर रहो;
दोयम दर्जे की लगती है न तुम्हें
घर की चारदीवारी में सजी
सम्मान के साथ जीती हुई लड़कियाँ,
क्यों उलझाओ उनकी तुलना में खुद को
वो तो नींव हैं घर की
सम्मान हैं रिश्तों की
उनके लिए चूल्हा-चौका कुंठा का विषय नहीं,
जीन्स, शर्ट पहनकर बाइक चलाने वाली
लड़कों की बराबरी करती लड़कियों
बेवजह दम्भ में ये क्यों भूल जाती हो
क्या लड़कों ने कभी बराबरी का प्रश्न उठाया?
क्या तुम छुपा सकती हो देह के भूगोल को?
क्या तुम प्रणय और समर्पण के बदले मिले
भाव और प्रेम का अंतिम बून्द तक
रसास्वादन नहीं करना चाहती?
क्या तुम्हें अपने प्रिय के आलिंगन से
वो अनुभव नहीं होता
जो लड़की होकर होना चाहिए?
क्या तुम श्रष्टि की वाहक बनने से
खुद को पदच्युत करना चाहती हो?
तुम्हीं से तो दुनिया खूबसूरत है,
बेहतर है कि तुम अपनी गरिमा बनाए रखो
बजाय बराबरी के फेर में पड़ने के,
अगर बराबरी करनी है तो निकलो मैदान में
बलात्कार नाम के जहर का कड़वा घूंट
उन्हीं को पिलाकर आओ,
बदला लेकर आओ अपनी बहनों की अस्मत का;
ये सच है कि कानून पेचीदा गणित में उलझायेगा
खोखले वादों से इज्जत न बचा पाएगा
तो जागो देवियों
एक, दो, तीन, चार और एक दिन हजार
इतनी ही संख्या में जाओ
हवस के दरिंदो को वीरांगना का अर्थ बताओ,
नहीं कर सकती न बलात्कार किसी लड़के का तुम
फिर स्वीकार लो लड़की होना,
लड़की होकर तुम अक्षम तो नहीं,
लड़कों से किसी मायने में कम तो नहीं,
बराबरी तो वो तुम्हारी भी नहीं कर सकते,
अगर तुम्हें मुखाग्नि देने का हक़ नहीं दिया गया
तो उन्हें भी चूड़ियां पहनने के हक़ से
वंचित रखा गया,
फिर कौन सा समीकरण बनाना है?
मनु ने किसी की बराबरी का
परचम नहीं लहराया था
पर मणिकर्णिका और झांसी की रानी के नाम से
अपना लोहा मनवाया था,
पाश्चात्य सभ्यता का
नगाड़ा बजाने वाली ओ लड़कियों
भारत का इतिहास उठाकर देखो,
सीता वन को गयीं थी
राधा प्रेममयी थी
गार्गी, अपाला को याद करो
रज़िया सुल्तान सा इतिहास रचो
कल्पना, इंदिरा, अरुणिमा को पहचानो,
और तहे-दिल से ये बात मानो
समंदर समंदर ही होता है
नदी नदी ही रहती है
कौन कहता कि नदी समंदर में विलय होकर
अपना अस्तित्व खोती है,
नदी तो अपनी रवानी में बहती है,
गंगा का प्रादुर्भाव धरा पर
भागीरथ के तप से ही हुआ था
और समंदर लंका विजय में
राम के रोष का विषय बना था;
सनस्क्रीन लगाकर खुद को
सन से छुपाती ओ लड़कियों
तुम तो स्तम्भ हो
नाजायज बदलाव की मांग को
आवाज़ मत उठाओ
तुम तो अनन्तिम वेतन आयोग की
खामोश चीत्कार हो
जो बदलता तो महज
एक महकमे की गड्डियों की मोटाई है
पर हर वर्ग पर भारी पड़ती
उसकी अंगड़ाई है।
हमें मोक्ष चाहिए
अंजलि में
पुष्प और जल सजाकर
गंगा के घाट पर
तर्पण को आओगे न!
मंत्रोच्चार में
कुछ सिसकियाँ भी होंगी
अगर सुन सको तो,
भरकर लाओगे
हमारी अस्थियों का कलश
उसमें वो पल भी रखना
जो हमारे थे,
आज प्रवाहित हो जाने दो
बिना मायने के
समानांतर चल रहे संयोजन को;
इन सबके बीच
तुम्हारे चेहरे पर
एक अलग सा तेज दिखेगा
तुम कर जो रहे होगे न
अंतिम क्रिया के बाद की भी क्रियाएं
मग़र हाँ
दक्षिणा में वो स्नेह रखना न भूलना
जो हमें तुममे एकीकार करता था
हमें मोक्ष चाहिए!!
न तुम जानो न...
सुख मेरी आँखों का
दुःख मेरे अंतर का
या तुम जानो
या मैं जानूँ,
उष्मित होता है जब प्रेम,
पिघलती रहती है
भावों की बर्फ
परत दर परत,
तुम बांधते रहते हो
मन का कोना
मैं खुलती रहती हूँ
सवालों की तरह.
एक पहेली ही तो है
वो पल
जो तुम जानो
और मैं जानूँ,
पूर्णता है प्रेम की
तुम्हे पा लेने में,
एकाकी है मन
तुम्हे खुद में समां लेने में,
मेरे मन के वृन्दावन में
क्यों रहते हो हर पल
तुम ही तुम
न तुम जानो
न मैं जानूँ।
इंसाफ
महिला: साहब हमारे मरद ने हमको बेल्ट से बहुत पीटा। इसकी रिपोर्ट लिखिए।
थानेदार: मगर तेरा मरद तो कुर्ता-पायजामा पहनता है।
पति: वही तो हम भी जानना चाहते हैं थानेदार साहब कि हमारी झोपड़ी में बेल्ट आया कैसे?
थानेदार साहब असमंजस में आकर कुर्सी से उठ खड़े हुए। इंसाफ तो ईश्वर के हाथों होना चाहिए क्या आज मेरा ईश्वर मुझे एक गुनहगार के साथ खड़ा कर रहा है?
स्वीकृति
बदन दर्द से तप रहा है और बुखार है कि उतरने का नाम नहीं ले रहा। उठने से मजबूर हूँ डॉक्टर के यहाँ तक भी नहीं जा सकती। इतनी गर्मी में भी खुद को कम्बल में लपेट रखा है। विजय दरवाजा खटखटाए बगैर अंदर दाखिल हो गए। मैंने कम्बल को और करीने से बदन से चिपका लिया। बहुत उम्मीद थी कि एक बार पलट कर हाल तो पूछेंगे ही। चेहरे के किनारे एक हल्की सी मुस्कान बिखेरते हुए बोले,
'सुधा सर दर्द से फटा जा रहा है। चाय की तलब लगी है।'
'मग़र मुझे...'
'ये अगर-मगर छोड़ो बस एक प्याली पिला दो। तुम तो जानती हो न तुम्हारे हाथ की चाय मेरी कमजोरी है।'
मैं चाय के पैन में उबलते हुए पानी को देख रही हूँ साथ ही ये भी सोच रही हूँ कि एक स्त्री का परम सुख तो बस उसके पुरुष की आँखों में पढ़ने वाली स्वीकृति में है।
माँ तो बस माँ होती है..
तान्या बहुत खुशी-खुशी नेल पेंट कर रही थी और बीच-बीच तुषार की आवाज भी सुनती जा रही थी। वो पास वाले कमरे में अपनी बूढ़ी माँ को डांट रहा था, 'आखिर तुम चाहती क्या हो, हम घर छोड़कर चले जाएं? जो भी हो साफ कह दो अब मुझसे रोज का ये सब नहीं देखा जाता इससे तान्या का भी बी पी हाई हो जाता है।'
तभी फोन की घण्टी बजी। उधर से उसकी माँ की रोती हुई आवाज सुनाई दी। उसके भाई-भाभी ने उन्हें घर से निकाल दिया था।
'हौसला रखो माँ, हम अभी दस मिनट में पहुँचते हैं।'
'नहीं बेटा मैं ही आ रही हूँ।' तान्या ने मना किया पर फोन कट चुका था। डोरबेल बजते ही दरवाजा खोला। माँ दरवाजे पर ही तान्या से लिपटकर रोने लगी।
'ऐसा कैसे कर सकता है भाई। माना भाभी गैर है पर वो तुम्हारा बेटा है।' तान्या ने भाई को जी भरकर गाली दी।
'सही कहा तुमने। पर क्या तुषार समधन जी का बेटा नहीं है?'
ये सुनकर तान्या का दिल बैठ रहा था और तुषार पास खड़ा मुस्करा रहा था।
'कल रात मुझसे बात करने के बाद तुम फोन काटना भूल गयीं थी शायद। मैंने तुम्हारी सारी बातें सुनी। फिर तुषार से बात करके ये प्लान बनाया। तुम्हें सबक सिखाना जरूरी हो गया था।'
'अब बस भी करिए समधन जी। हमारी बहू इतनी भी बुरी नहीं।' सास ने ये कहकर तान्या को गले से लगा लिया।
मेरी पहली पुस्तक
http://www.bookbazooka.com/book-store/badalte-rishto-ka-samikaran-by-roli-abhilasha.php
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