GOOGLE IMAGE
लोग कहते हैं
समय के साथ
प्यार पुराना हो जाता है,
मगर जान
तुम तो हमारा
ऑटो अपडेट वर्जन हो,
न पुराने होगे
न बदलने पड़ोगे;
हो भी तो वायरस फ्री,
विश्वास और मोह के
दो पायों पर टिकी
शीत, ताप, बारिश की छत हो जैसे:
जब 25 अप्रैल को
लोग कहते हैं....
धरती हिली थी,
हम तो
जैसे तुम्हारी लहर की गोद में थे,
भूकम्प
हमारा पता जाने बगैर ही गुजर गया;
अच्छा है जो अपना इश्क़ हार्डवेयर नहीं है
छुप जाते हो,
कलम की स्याही,
शब्दों की खुशबुएँ बनकर;
ये न जताना
कि तुम इस अनारकली के
शहजादा सलीम हो,
कहीं जहाँपनाह की शमसीर
सौ बार हमें जिबह न कर दे,
किसी ने छुप-छुपकर
मिलते-मिलाते देखा भी तो
सौ बार गंगा मइया से बोला
बस इस बार बचा लो,
कल ही हरिद्वार आते हैं
पिछले हर कसम की डुबकी लगाने:
खण्डहर की छत पे
हो एक टूटी खाट
स्याह नभ के तले
तुम्हारी कलाई थामे हो हमारा हाथ
और हमें क्या चाहिए,
ए सी कमरों में
बनावटी सामानों के बीच
पहाड़नुमा चीड़-सागौन के
नक्काशीदार बेड की नरम बिछावन पर
तुम स्लो सिस्टम लगते हो हमें:
हम प्यार बेशुमार करते है,
इस प्यार में
नहीं कोई इतवार करते हैं,
और ऐतबार से कहते हैं
अगर प्रेम जैसे खौफनाक
मगर यूनिवर्सल ट्रूथ को आगे बढ़ाया जाए,
तुम्हारे जैसे आशिक़ को
हमारे जैसी महबूबा से मिलाया जाए,
तो थर्ड वर्ल्ड वार खयालों में भी न होगा।