To explore the words.... I am a simple but unique imaginative person cum personality. Love to talk to others who need me. No synonym for life and love are available in my dictionary. I try to feel the breath of nature at the very own moment when alive. Death is unavailable in this universe because we grave only body not our soul. It is eternal. abhi.abhilasha86@gmail.com... You may reach to me anytime.
.....जब पास नहीं हो तुम
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लिखना होता है जब बहुत प्रेम
तुम्हें लिख देती हूँ,
मन होता है ढ़ेरों बातें करने का
हजारहां खयाल बुन देती हूं;
शाम ढले जब भी
पक्षियों को देखती हूँ
व्याकुल से लौटते हैं
अपने घरौंदों की तरफ
मैं भी बाट जोहती हूँ तुम्हारी
कि कब आओ
और मैं तुमपे न्योछावर करूँ
प्रेम की हर बून्द
मन के रीतने तक,
घूमती रहूँ तुम्हारे इर्द-गिर्द;
कभी चुन दो न मुझे
अपने अहसास की दीवार में,
तुम पलकें झपकाओ
और मैं बन्द हो जाऊँ
काली पुतलियों के घेरे में,
मेरे दर्द को पनाह मिल जाये
तुम्हारे होने में;
कब दोगे वो रात
जिसकी सुबह मायूस न हो,
क्या करूँ
ज़िन्दगी फ़क़त इतनी भी तो नहीं
रोज़ सुबह होती है
कलेवा भी करती हूँ,
हर अहसास वाली गुनगुनी सुबह को
शाम के दर तक ले जाती हूँ
और अक्सर
तुम्हारे न आने का बहाना
इतनी तसल्ली देकर जाता है
कि तुम तो मेरा सवेरा हो
रातें अपने हिस्से की
कोई और ले गया;
मैं मुस्कराती हूँ हर सुबह
तुम्हारे लिए
कि तुम भी कहीं तो खुश होगे
किसी के साथ
मुझे ईर्ष्या होती है
हर उस शय से जिसे तुम्हारा साथ मिला
उस सूरज से, रोशनी से,
दिन से, सवेरे से,
उन दीवारों से
जहाँ बैठकर तुम लम्हे बुनते हो,
तुम्हारा आकाश एकटक
तुम्हारा नूर ताकता है
मैंने तो उल्टी गिनती भी नहीं शुरू की
जब देख सकूँगी तुम्हें,
बस शब्दों का प्रक्षेपण होता है,
महसूस करती हूँ
तुम्हारी आवाज़ का स्पंदन
अगली आवाज़ मुखर होने तक;
फिर जब बोलते हो न
तो विराम नहीं अच्छा लगता,
प्रेम करती रहूँ तुम्हें
आखिरी साँस के थकने तक
अब आराम नहीं अच्छा लगता।
इसरो का सफ़र..
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104 सैटेलाइट एक साथ लांच करने का
इसरो का था पुराना रिकॉर्ड
श्रीहरिकोटा आंध्रा से
मिल गयी एक नयी सौगात:
अप्रैल दिवस 19 सन 1975
सोवियत संघ ने मदद का हाथ बढ़ाया
भारत ने पहला उपग्रह
कक्षा आर्यभट्ट में पहुंचाया;
1980 में रोहिणी सैटेलाइट के प्रक्षेपण का
हुआ सफल प्रयास
अपना पहला राकेट एसएलवी-3 भेजा
पूरी कर ली आस;
इसरो का लोहा दुनिया ने माना है
अब आगे की योजना भी बताना है,
सूर्य के नमन को आदित्य-1
2019 में जायेगा,
2020 में शुक्र और
2021-22 मंगलयान-2 विजय गाथा गायेगा:
मार्च का महीना दूसरे चन्द्र मिशन
चन्द्रयान-2 को समर्पित है
विश्व की नज़र हमारी सस्ती तकनीक पर है
इसरो की नज़र हर महीने
एक रॉकेट भेजने की नीति पर है।
भारत सहित 6 अन्य देशों के 31 उपग्रह प्रक्षेपित करने के लिए हमारे वैज्ञानिकों को बहुत-बहुत बधाई।
अथ श्री चाय महात्म्य!
तुम्हारी याद भर से
मोह जाता है मन
एक छुवन भड़का जाती है
मन की अगन,
हर बूँद में
स्वाद लिए फिरती हो
आज भी महज़बीं हो
और बीते जमाने की
याद लिए फिरती हो,
घर हो या ऑफिस
जी चाहता है
होठों से लगी रहो,
महफ़िल हो कोई भी
तुम्हारे बिना
अधूरी सी लगती है,
वक़्त बदला
लोग भी बदल गए,
पर तुम नए कलेवर में
साथ-साथ चलती रहीं,
एक वो जमाना था
कि चूल्हे पर भगोने में
सुबह शाम चढ़ती थी
केतली की टोटी से
हौले-हौले गिलास में गिरती थी,
अब देखो न तुम्हारे स्वागत को
पैन और कप आते हैं,
डिस्पोजल को भी
कुल्हड़ कहाँ भाते हैं,
पर तुम तो मैदान में डटी हो
स्वाद कोई भी हो
नाम में वही हो;
बस मुझे ही नहीं
सभी को बहुत भाती हो
जब कहलाती हो
अदरक वाली चाय,
जुकाम हो तो तुलसी वाली,
खांसी भगाये कालीमिर्च वाली,
स्वाद में अच्छी
गुड़ और नमक वाली,
नींबू वाली चाय,
चाय कहेंगे कैसे इसे
ये तो औषधि है,
जो पिए वो गुण गाए
जिसे न भाए
वो पछताए,
चाय की बराबरी
कौन कर पाए.
अगर चाय खुशी की महफ़िल है
तो ग़म में भी जान है,
भले ही उठ रहे हो जनाजे
चाय की तो
ज़िन्दगी देने में पहचान है,
कुछ सुबह शाम पीते हैं,
कुछ पीकर शाम करते हैं,
वो और होंगे
जो गिनतियों में पीते हैं
चाय के दीवाने तो
आसमान के तारों की तरह
हर गिनती नाकाम करते हैं,
ठंडी-गरम, घूंट-घूंट, पूरा कप
क्या फर्क पड़ता है,
जिनकी रगों में खून नहीं
चाय का खुमार बहता है,
ये तो शुरुआत है
चाय पर दो शब्द
इस महात्म्य का वर्णन
अभी आगे बढ़ाना है,
आपके स्नेह की आंच पर
इसे खौलाते जाना है.
एक दिन...जब तुम खो दोगे मुझे
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एक दिन यक़ीनन तुम मुझे खो दोगे
जैसे आज तुम्हें फिक्र नहीं
मेरे रूठने-मनाने से
मेरे रोकर बुलाने से
मेरे दूर हो जाने से
जब चली जाऊंगी हमेशा की खातिर
तुम ढूंढोगे मुझे ज़र्रा-ज़र्रा
चीखोगे मेरा नाम सन्नाटों में,
मुस्कराओगे सोचकर मेरा पागलपन
कि मैं होती तो क्या करती,
आज जब मैं हूँ हर उस जगह
जहाँ तुम चाहते हो
तो कैसे समझोगे मेरा न होना
और जब महसूसोगे
मैं नहीं बची रहूँगी
वापिस आने भर को भी
झलक में मिलूँगी न महक में
न ही बेबस पुकारों में,
मैं टुकड़ा-टुकड़ा जी रही हूँ आज
रत्ती-रत्ती मरने को,
एक कण सा भी चाहते हो मुझको
तो समा लो मेरा वजूद अपनी छाया में
मेरा दम घुट रहा है
बचा लो मुझे मर जाने से
मेरा दर्द बिखर जाने से
मैं गयी तो खो जाऊंगी
तुम शिकायत करोगे
तलाशोगे मेरी आवाज हर चेहरे में
और मैं सिमट जाऊंगी
चन्द अहसासों में सिमटे बस एक नाम में
एक थी ...
तब यकीनन खो चुके होगे मुझे।
प्रेम: कल्पनीय अमरबेल...प्रथम अंक
हमारे वैवाहिक रिश्ते को अभी चन्द महीने हुए थे। अभिलाषाएं पालने में ही थी पर आवश्यकताओं ने पाँव पसारने शुरू कर दिए थे। वो बेटे न होकर पति जो बन गए थे और मैं भी बेटी कहाँ रह गयी थी। जो एक अच्छा सा सामंजस्य चला आ रहा था सात बरसों के बेनाम जीवन में, रिश्ते को नाम मिलते ही बचकाना सा लगने लगा। प्रेम को मंजिल तक लाने में जो सफर तय किया आज वो उम्र का कच्चापन लग रहा। जाने क्यों आज ऐसा लग रहा कि प्रेम एक अमरबेल है बस देखने में सुंदर। अगर स्थिरता न हो तो ये किसके परितः अपनी साँसे जियेगा। कल हम प्रेम में थे, लव-बर्डस की उपमा दी जाती थी पर आज मैं समय हूँ और ये पहिया......
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क्रमश:
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कहानी जारी रहेगी।
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