जब तुम्हारी पहली चिट्टी आयी थी
लिफाफे पर देखा था अपना नाम
एक सुंदर सी बड़ी लिखावट वाला
मुरझा सा गया था
उसका पीला रंग
मग़र तुम्हारे हाथों की खुशबू लेना नहीं भूले
ये जानते हुए भी
कि कितने ही हाथों ने छुआ होगा
तुम्हारे बाद भी,
हर अक्षर बचाकर खोल ही दिया था लिफाफा
और एक-एक कर निकाले थे
वो सारे दस्तावेज़,
जो तुम्हारी बुद्धिमत्ता, कुशलता और
अनुभवी होने के परिचायक थे
उन सबके बीच
तुम्हारा एक प्यारा सा चित्र,
तुम्हारी खुशबू बरसाते
काले रंग की स्याही से लिखे हुए चंद अक्षर
हम जानते थे
ये हमारे लिए हैं
फिर भी हम ढूंढते रह गए थे
तुम्हारा दिया हुआ एक प्यारा सा संबोधन
जो सिर्फ हमारे लिए होता
तुमने लिख भेजी थी हिदायतें
इस हिदायत के साथ
कि
तुम चाहो तो रख सकती हो
मेरी तस्वीर...अपने पास
तबसे आज तक
तुम्हारी वो तस्वीर
और खत वाला लिफाफा
घेरे हुए हैं
मेरे तकिए के नीचे की जगह
मग़र अब तक इंतज़ार है
उस सम्बोधन का!
To explore the words.... I am a simple but unique imaginative person cum personality. Love to talk to others who need me. No synonym for life and love are available in my dictionary. I try to feel the breath of nature at the very own moment when alive. Death is unavailable in this universe because we grave only body not our soul. It is eternal. abhi.abhilasha86@gmail.com... You may reach to me anytime.
बिना संबोधन वाला पहला ख़त
युवा जीवन की परिणति
बादलों के सुरमई माथे पर
भोर की नारंगी किरणें
अल्हड़ सा अंगड़ाई लेता
बाहें पसारे दिन
चिरयुवा सा दमकता
एकाएक विलीन हो जाता है
तपती दोपहर में
जैसे रिटायरमेंट की अवस्था में
पतली होती
बाबूजी की पेंशन
और घर-खर्च के लिए
आज भी जोड़-तोड़ करती अम्मा,
उसे युवावस्था की दहलीज़ पर खड़ी
बेटी के हाथ जो पीले करने हैं।
हो इश्क़ मुक़म्मल तो जानें
बुलंदियाँ तो इश्क़ की,
नाकामियों में हैं
हम तुम्हारे और तुम हमारे
ये सब समझौते हुआ करते हैं
मुक़म्मल जज़्बात
तो तब हैं
कि
तुम हममें
और हम तुममें रहें।
शर्त ये है कि...
प्रेम बंटता है अगर
तुममें और हममें
तो बँट जाने दो
मग़र शर्त ये है कि
हम तुम्हें तुम्हारे जैसा
और तुम हमें
हमारे जैसा चाहो।
एक युद्ध स्वयं के विरुद्ध
शहादत पर हर बरस
मेले लगाने से पहले
पूँछ लेना उस माँ से
कैसे कलेजा जला था,
पूँछना हर शमा को
जलाने से पहले
कैसे उस सुहागिन का
सिंदूर मिटा था,
पूँछना ये टूटने से पहले
कहाँ गया उम्मीद बनकर
कलाई पर बहन की
जो धागा बंधा था,
शहादत कोई इनाम नहीं है
शहीद कोई नाम नहीं है
ये तो बस एक दिलासा है
आज कक्षा में
बच्चों को पढ़ाया जाने वाला
एक दिन का सबक,
प्रतिमाओं के आस-पास
चौराहों पर होने वाला
एक आयोजन मात्र,
23 मार्च के नाम पर
सबसे बड़ा भाषण देने वाले
महोदय से
बस एक बार पूंछना होगा
क्या अपने घर में
कोई भगत सिंह देखना चाहेंगे
बजाय अम्बानी, सहारा
सचिन, मोदी के???
आज के भगत सिंह, सुखदेव
और राजगुरु को
एक अघोषित युद्ध लड़ना होगा
स्वयं के विरुद्ध,
भ्रष्टाचार, अनैतिकता
और गन्दी राजनीति के विरूद्ध।
शून्य से पहले
दायरारहित सोच के
बाहर का दायरा,
कल्पनारहित उड़ान के
बाद की कल्पना,
दर्दरहित जीवन के
अंत का दर्द,
प्रेमरहित मन के
पतझड़ का प्रेम,
गतिरहित आशा के
स्थिरता की आशा,
पड़ावरहित सफर के
दूरन्त का पड़ाव,
....महज कोरी कल्पनाएं नहीं
ये तो एक विराम है
शून्य है
इसके बाद स्थान लेती है
ऋणात्मकता....
मत जाइए शून्य तक
मत खोजिए नकारात्मकता
जीवन अंटार्कटिका नहीं यूरेशिया है
क्योंकि हर जीव पोलर बियर नहीं
कुछ मानव भी हैं।
खुशी बांटते रहिए
मुस्कान मन की आभा है
अधरों पर सजाकर रखिए
हो न ये मन अपनों से खाली
रिश्ते सभी से निभाकर रखिए
ये दुनिया है छोटा घरौंदा हमारा
न टूटे कि इसको बचाकर रखिए
है सुबह जो अपनी तो शाम भी है
रूठे वक़्त से भी अब बनाकर रखिए
साथ चलने से ही तो कारवां बनता है
बांटिए खुशी दर्द को मुस्कराकर रखिए।
20 मार्च: अंतरराष्ट्रीय खुशी दिवस
संयुक्त राष्ट्र संगठन ने वर्ष 2013 में ये दिवस मनाने की घोषणा की। आइये हम सब मिलकर आज का दिन मनाते हैं।
चचा लखनऊ उवाच 1
दो शेर
उनके तन्हा होने का उन्हें सबब क्या पता
रिश्ते तो मर गए मगर दफनाए नहीं गए।
दिल की बंजर जमीं थी पर मोहब्बतों के फूल खिल तो गए,
अहसास की नमी हवा हो गयी, वहाँ कैक्टस के गुलिस्तां मिले।
प्रेरणापुंज कल्पना को नमन
मेरी पहली पुस्तक
http://www.bookbazooka.com/book-store/badalte-rishto-ka-samikaran-by-roli-abhilasha.php
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•जन्म क्या है “ब्राँड न्यू एप का लाँच” •बचपन क्या है टिक टाक वीडियो •बुढ़ापा क्या है "पुराने एप का नया लोगो” •कर्म क्या हैं “ट्रैश” •मृ...
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प्रेयसी बनना चाहती है वो पर बिना पहले मिलन प्रेम सम्भव ही कहाँ, सुलझाते हुए अपने बालों की लटें उसे प्रतीक्षा होती है उस फूल की जो उसका...