अंजलि में
पुष्प और जल सजाकर
गंगा के घाट पर
तर्पण को आओगे न!
मंत्रोच्चार में
कुछ सिसकियाँ भी होंगी
अगर सुन सको तो,
भरकर लाओगे
हमारी अस्थियों का कलश
उसमें वो पल भी रखना
जो हमारे थे,
आज प्रवाहित हो जाने दो
बिना मायने के
समानांतर चल रहे संयोजन को;
इन सबके बीच
तुम्हारे चेहरे पर
एक अलग सा तेज दिखेगा
तुम कर जो रहे होगे न
अंतिम क्रिया के बाद की भी क्रियाएं
मग़र हाँ
दक्षिणा में वो स्नेह रखना न भूलना
जो हमें तुममे एकीकार करता था
हमें मोक्ष चाहिए!!
To explore the words.... I am a simple but unique imaginative person cum personality. Love to talk to others who need me. No synonym for life and love are available in my dictionary. I try to feel the breath of nature at the very own moment when alive. Death is unavailable in this universe because we grave only body not our soul. It is eternal. abhi.abhilasha86@gmail.com... You may reach to me anytime.
हमें मोक्ष चाहिए
न तुम जानो न...
सुख मेरी आँखों का
दुःख मेरे अंतर का
या तुम जानो
या मैं जानूँ,
उष्मित होता है जब प्रेम,
पिघलती रहती है
भावों की बर्फ
परत दर परत,
तुम बांधते रहते हो
मन का कोना
मैं खुलती रहती हूँ
सवालों की तरह.
एक पहेली ही तो है
वो पल
जो तुम जानो
और मैं जानूँ,
पूर्णता है प्रेम की
तुम्हे पा लेने में,
एकाकी है मन
तुम्हे खुद में समां लेने में,
मेरे मन के वृन्दावन में
क्यों रहते हो हर पल
तुम ही तुम
न तुम जानो
न मैं जानूँ।
इंसाफ
महिला: साहब हमारे मरद ने हमको बेल्ट से बहुत पीटा। इसकी रिपोर्ट लिखिए।
थानेदार: मगर तेरा मरद तो कुर्ता-पायजामा पहनता है।
पति: वही तो हम भी जानना चाहते हैं थानेदार साहब कि हमारी झोपड़ी में बेल्ट आया कैसे?
थानेदार साहब असमंजस में आकर कुर्सी से उठ खड़े हुए। इंसाफ तो ईश्वर के हाथों होना चाहिए क्या आज मेरा ईश्वर मुझे एक गुनहगार के साथ खड़ा कर रहा है?
स्वीकृति
बदन दर्द से तप रहा है और बुखार है कि उतरने का नाम नहीं ले रहा। उठने से मजबूर हूँ डॉक्टर के यहाँ तक भी नहीं जा सकती। इतनी गर्मी में भी खुद को कम्बल में लपेट रखा है। विजय दरवाजा खटखटाए बगैर अंदर दाखिल हो गए। मैंने कम्बल को और करीने से बदन से चिपका लिया। बहुत उम्मीद थी कि एक बार पलट कर हाल तो पूछेंगे ही। चेहरे के किनारे एक हल्की सी मुस्कान बिखेरते हुए बोले,
'सुधा सर दर्द से फटा जा रहा है। चाय की तलब लगी है।'
'मग़र मुझे...'
'ये अगर-मगर छोड़ो बस एक प्याली पिला दो। तुम तो जानती हो न तुम्हारे हाथ की चाय मेरी कमजोरी है।'
मैं चाय के पैन में उबलते हुए पानी को देख रही हूँ साथ ही ये भी सोच रही हूँ कि एक स्त्री का परम सुख तो बस उसके पुरुष की आँखों में पढ़ने वाली स्वीकृति में है।
माँ तो बस माँ होती है..
तान्या बहुत खुशी-खुशी नेल पेंट कर रही थी और बीच-बीच तुषार की आवाज भी सुनती जा रही थी। वो पास वाले कमरे में अपनी बूढ़ी माँ को डांट रहा था, 'आखिर तुम चाहती क्या हो, हम घर छोड़कर चले जाएं? जो भी हो साफ कह दो अब मुझसे रोज का ये सब नहीं देखा जाता इससे तान्या का भी बी पी हाई हो जाता है।'
तभी फोन की घण्टी बजी। उधर से उसकी माँ की रोती हुई आवाज सुनाई दी। उसके भाई-भाभी ने उन्हें घर से निकाल दिया था।
'हौसला रखो माँ, हम अभी दस मिनट में पहुँचते हैं।'
'नहीं बेटा मैं ही आ रही हूँ।' तान्या ने मना किया पर फोन कट चुका था। डोरबेल बजते ही दरवाजा खोला। माँ दरवाजे पर ही तान्या से लिपटकर रोने लगी।
'ऐसा कैसे कर सकता है भाई। माना भाभी गैर है पर वो तुम्हारा बेटा है।' तान्या ने भाई को जी भरकर गाली दी।
'सही कहा तुमने। पर क्या तुषार समधन जी का बेटा नहीं है?'
ये सुनकर तान्या का दिल बैठ रहा था और तुषार पास खड़ा मुस्करा रहा था।
'कल रात मुझसे बात करने के बाद तुम फोन काटना भूल गयीं थी शायद। मैंने तुम्हारी सारी बातें सुनी। फिर तुषार से बात करके ये प्लान बनाया। तुम्हें सबक सिखाना जरूरी हो गया था।'
'अब बस भी करिए समधन जी। हमारी बहू इतनी भी बुरी नहीं।' सास ने ये कहकर तान्या को गले से लगा लिया।
तुम साथ हो जब अपने...
इस रिवाल्वर में बस दो ही गोलियां हैं..अभी नहीं विशेष आ जाएं तब..एक उनके लिए और एक मेरे लिए, ये ठीक रहेगा।
बहुत प्यार करती थी अनु विशेष से पर जाने क्यों कुछ दिनों से वो फील कहीं मिस हो रहा था। एक दशक पुराना रिलेशनशिप कभी गहन खामोशी तो कभी तानों में सिमटकर रह गया था। अनु साँसों से तो दूर रह सकती थी मग़र ज़िन्दगी से नहीं। रोज ही झगड़ती थी उससे पर दूर एक पल को भी नहीं रह पाती थी। शादी, मंगलसूत्र, सिंदूर ही कोई रीज़न तो नहीं होता कि सामनेवाला उसे प्यार करता रहे। कहीं रिश्ते में प्यार खो तो नहीं गया। उसे बस एक ही सवाल परेशान करता है ..जब विशेष अपनी साइकोलॉजिकल नीड्स के लिए उस पर डिपेंडेंट था फिर अब छोटी-बड़ी हर बात उससे छुपाने क्यों लगा है, क्या कोई है जिसे उसने ये हक़ दे दिया?? तिलमिला उठती है अनु इस बात से। विशेष का गैर-जिम्मेदारी वाला रवैया काफी है कि अनु अपना डेली रूटीन छोड़कर बस यही सोचती रहे।
आज सुबह भी विशेष बिना कुछ बताए ऑफिस के लिए निकला। कुछ ही देर में बॉस का फोन आया कि उसने छुट्टी ली है और फोन भी ऑफ कर रखा है। इतना सुनते ही अनु के पूरे बदन में सनसनी फैल गयी जैसे किसी ने हजारों सुईंया चुभा दी हों।
जब से मेड डस्टिंग करके गयी अनु हाथ में रिवाल्वर लिए आराम कुर्सी पर झूल रही है। वो विशेष को मारकर खुदकुशी करना चाहती है। उसे लगता है शायद मरने के बाद अपना खोया हुआ प्यार पा सके। मोबाइल की लगातार बजती घण्टी सुनकर आँखें खोलीं।
"मैडम अगर आप अपने पति से मिलना चाहती हैं तो तुरंत होटल उत्सव रूम नंबर 209 में पहुंच जाइए।"
खयालों की तेजी के साथ अनु 209 के सामने पहुँचकर डोंट डिस्टर्ब के टैग को तोड़ चुकी थी। दरवाजा खुलते ही गोली चलने की आवाज के साथ उसके कदम लड़खड़ा गए। अगले पल आँखें खुलते ही खुद को विशेष की बाहों में महफूज पाया। वो किरकिरी और फोम से नहा चुकी है। हैप्पी बर्थडे का मेलोडियस साउंड बज रहा है। पूरा हॉल रंग-बिरंगी लाइट्स से जगमगा रहा पर उसे विशेष की आँखों में जलते प्रेम के दिए दिख रहे थे बस। इन सब उलझनों में उसे अपना बर्थडे तक नहीं याद रह गया था।
"तुम ठीक तो हो न विशू!" उसका चेहरा छूकर फील करना चाहती थी कुछ बुरा तो नहीं हो गया।
"तुम हो न फिर..." कहते हुए विशेष ने अनाया को अपनी बाहों में जकड़ लिया।
मेरी पहली पुस्तक
http://www.bookbazooka.com/book-store/badalte-rishto-ka-samikaran-by-roli-abhilasha.php
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