सुनो

कब आओगे
ख्वाहिश की तरह
एक मजबूत चट्टान बनकर
जिस पर तैर रहे
शब्दों के तिलचट्टों का
रत्ती भर भी असर न हो

कब आओगे
आंसू की तरह
इतने तरल होकर
कि हम भी पिघल जाएं
और समा जाएं तुममें
किसी को खबर न हो.

2 टिप्‍पणियां:

DUSHYANT ने कहा…

सरल भी, गहन भी।

Roli Abhilasha ने कहा…

देर से पढ़ने के लिए क्षमा चाहती हूँ.
बहुत आभार आपका 🙏

मेरी पहली पुस्तक

http://www.bookbazooka.com/book-store/badalte-rishto-ka-samikaran-by-roli-abhilasha.php