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सबके अन्तस् एक दशानन


स्वयं के अन्तस् रावण अटल

घात लगाए स्वयं की हर पल

मुझको दर्पण बन, जो मिला

वही विजित है मेरा स्वर कल


नयन में राम तो पग में शूल हैं

हर शबरी के हिय हूक मूल है

हुआ आँचल माँ का तार-तार

बहने दो निनाद, भाव कोमल


कौन कहे कि हर सत्य राम है

कहीं दशानन भी, सत नाम है

नाम नहीं अब दहन करो तम,

गर्व और पाखंड का अस्ताचल

6 टिप्‍पणियां:

Manisha Goswami ने कहा…

कौन कहे कि हर सत्य राम है
कहीं दशानन भी, सत नाम है
नाम नहीं अब दहन करो तम,
गर्व और पाखंड का अस्ताचल
बहुत ही उम्दा रचना!

Alaknanda Singh ने कहा…

बहुत ही सुंदर ल‍िखा रोली जी क‍ि "नयन में राम तो पग में शूल हैं

हर शबरी के हिय हूक मूल है

हुआ आँचल माँ का तार-तार

बहने दो निनाद, भाव कोमल"---वाह सत्‍य भी और कटु भी

Roli Abhilasha ने कहा…

बहुत ही आभार आपका अनीता जी!

Roli Abhilasha ने कहा…

धन्यवाद मनीषा जी!

Roli Abhilasha ने कहा…

आभार अलकनंदा जी!

रोली अभिलाषा ने कहा…

बहुत आभार आपका मित्र! 🌸

मेरी पहली पुस्तक

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