रावण बनाम रावण

 

"माँ, आज के समय में राम तो नहीं होते न?" दशहरे का मेला देखकर लौटी मेरी बेटी चीखते हुए बोली.


उसके इस प्रश्न पर हतप्रभ सी खड़ी मैं बिस्तर पर चौड़े पड़े शराबी और अधमी पति को एकटक देखती रही. कितने पक्षपाती हो जाते हैं हम जब बात अपनों पर आ जाती है. ये प्रेम का कैसा रूप है!

4 टिप्‍पणियां:

Onkar ने कहा…

बेहतरीन

आलोक सिन्हा ने कहा…

बहुत बहुत सुन्दर रचना

Roli Abhilasha ने कहा…

शुक्रिया!

Roli Abhilasha ने कहा…

बहुत आभार आपका!

मेरी पहली पुस्तक

http://www.bookbazooka.com/book-store/badalte-rishto-ka-samikaran-by-roli-abhilasha.php