बचपन से ही मुझे केसरिया रंग प्रिय रहा. तब जबकि देशभक्ति का अभिप्राय नहीं मालूम था. उस रोज जब काकू को गाड़ी से उतारा जा रहा था तब भी मुझे इस रंग से कोई शिकायत नहीं हुई. काकी को चूड़ियाँ तोड़ते देख मेरे अंदर से कोई जय हिंद बोला था.
ये वैधव्य क्या कहूँ इसे... ये सावन है एक सच्चे सिपाही की प्रेमिका का. मेरे मन ने २१ तोपों की सलामी देते हुए काकी को बस इतना ही समझाया..."तेरी इन चूड़ियों के हरे रंग से ही तो तिरंगा बनता है."
5 टिप्पणियां:
आपकी लिखी रचना ब्लॉग "पांच लिंकों का आनन्द" पर गुरुवार 4 अगस्त 2022 को लिंक की जाएगी ....
http://halchalwith5links.blogspot.in पर आप सादर आमंत्रित हैं, ज़रूर आइएगा... धन्यवाद!
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सुंदर प्रस्तुति
अद्भुत।
हृदय स्पर्शी।
सलाम आपकी सोच को।
मार्मिक ।
बहुत ही सुन्दर प्रस्तुति..आभार
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