समय का सिंगारदान
काला हो चला है
सूख रही है मेरे कलम की स्याही
लिखने की मेज पर पड़ा
कप का निशान मिटता ही नहीं
मां कहती है,
मैं ज्यादा चाय पीने से मरूंगी
कितनी भोली है मां,
आज तक शायद ही
कोई डेथ सर्टिफिकेट बना हो
जिस पर मृत्यु का कारण
चाय पीना अंकित है,
जब इतने दर्द में जी गयी
मैं तो ज़हर से भी न मरूं;
मैं जब भी मरूंगी
आत्मा की भूख से मरूंगी...
8 टिप्पणियां:
शानदार... वाह्ह क्या बेहतरीन बिंब है और अभिव्यक्ति ने तो मन को छू लिया।
भावपूर्ण लाज़वाब रचना रोली जी।
सस्नेह।
दिल की व्यथा को व्यक्त की भावपूर्ण रचना।
बहुत सुन्दर अभिव्यक्ति मैम
मृत्यु को तो वरदान मिला है कि वो किसी न किसी बहाने से ही आएगी । लाजवाब सृजन ।
उफ् 👌
उत्कृष्ट रचना
वाह ! कितनी सरलता से कितने गूढ़ भावों को लिखा है आपने ।
मर्मस्पर्शी !
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