वह मेकअप नहीं लगाती
बाल सँवारती भी है
तो कामचलाऊ
उसे देखना है
तो तुम्हें अपनी आँखों को
करना होगा एडजस्ट
उसके लेवल तक
क्योंकि वो एडिट नहीं करती.
तुम सब भी तो नहीं
ला पाये ख़ुद को टाॅप पर
तुम ब्यूटीफुल हो
और वह ‘जेनुइन’
तुम सब एक जैसे हो
और वह ‘यूनीक’
To explore the words.... I am a simple but unique imaginative person cum personality. Love to talk to others who need me. No synonym for life and love are available in my dictionary. I try to feel the breath of nature at the very own moment when alive. Death is unavailable in this universe because we grave only body not our soul. It is eternal. abhi.abhilasha86@gmail.com... You may reach to me anytime.
वह मेकअप नहीं लगाती
बाल सँवारती भी है
तो कामचलाऊ
उसे देखना है
तो तुम्हें अपनी आँखों को
करना होगा एडजस्ट
उसके लेवल तक
क्योंकि वो एडिट नहीं करती.
तुम सब भी तो नहीं
ला पाये ख़ुद को टाॅप पर
तुम ब्यूटीफुल हो
और वह ‘जेनुइन’
तुम सब एक जैसे हो
और वह ‘यूनीक’
हर प्लीज का, मतलब रिस्पेक्ट नहीं होता
कुछ प्लीज किसी को मजबूर करने के लिए भी
'यूज़ किए जाते हैं
'नो' कहना सुरक्षित रखो मतलबी बातों के लिए.
आधी रात को 'सिगरेट पीने की इच्छा'
करने वाले दोस्त का 'प्लीज’
अगर तुम्हें मन न होने पर भी
दस नब्बे चौराहे के एकाँत पर खड़ा कर सकता है
तो मत भूलो कि एक दिन
बलात्कारी की तरह कटघरे में भी ला सकता है
माँ हमारी आधी गल्तियों पर पर्दा डालती हैं,
पिता या तो अति भावुक होते हैं या फिर अति क्रोधी
दोस्त आधे इधर होते हैं आधे उधर
सिब्लिंग, वो तो ख़ुद ही उसी में डूबे हैं
सोच रहे हो हेल्प किससे लें?
तुम्हारा अपना विवेक कहाँ है?
आधी रात को सिगरेट फूँकने से लेकर
वोट के अधिकार तक अपने निर्णय स्वयं करो
सोचो इलेक्टोरल बॉड्स को जानने का
हमारा अधिकार है या नही
सोचो यदि केजरीवाल, गुनहगार है
तो कितनी देर में पहुँचा सलाखों के पीछे
सोचो शिक्षित प्रत्याशियों के नाम पर
आम सहमति क्यों नहीं बनती
सोचो वोट एक पार्टी के नाम पर लेकर
जूते दूसरी पार्टी के चाटते हैं
सोचोगे कैसे
तुम्हें तो बस सिगरेट, साँप, लड़की, में उलझना है
तुम्हें तो बस यह सोचकर मरना है
कि अकेले मुझे खप कर क्या ही करना है
तुम एन्ड्रायड पर लिखो
लोग आई फोन पर पढ़ें
गोया झोपड़ी की चीख
महलों में इको करे
यह सोशल एनेस्थीसिया से
बाहर आने का समय है
भागना नहीं है
न तो प्रश्नों से
न ही स्वयं से
अब रील्स स्क्रॉल करना बंद, सर्वे से कमाना शुरु
मैं तुम्हें पढ़ती रहूँ
कभी अपने बिस्तर की सिलवटों बीच सिमटकर
कभी सूर्य नमस्कार करते हुए
कभी मंदिर की सीढ़ियों में
कभी दातुन फिराते हुए छज्जे पर
कभी कप में चाय उड़ेलते हुए स्लैब पर
कभी दफ़्तर के रास्तों में
कभी लंच की गप शप पर ठिठककर
कभी छुट्टियों में समय भर पसरकर
कभी मनाली लेह मार्ग के तंगलंगला दर्रे पर
कभी बादलों के घर में उड़ते उड़ते
कभी बुर्ज खलीफा की छाँव में
कभी जीवन के ठहराव में
कभी मृत्यु के पड़ाव में
....
कभी भी कहीं भी
बस इतने ही अनायास तुम आ जाते हो
जैसे बोल रहे हो कानों में
'अभी अभी कुछ लिखा है
बताओ भला कैसा लिखा है'
तुम्हारे शब्दों में जकड़ी हुई मैं
तुम्हारे शब्दों में स्वतंत्र होती हूँ
१• कुछ स्त्रियाँ होती हैं
बसंती सी
नाचती रहती हैं कुत्तों के सामने,
२• कुछ पुरुष होते हैं
गब्बर से
चलाते रहते हैं गोली मनोरंजन के लिए
३• कुछ स्त्रियां गब्बर भी होती हैं
४• कुछ पुरुष मगर बसंती नहीं होते
५• कोई भी पुरुष बसंती नहीं होता
आइये करते हैं चुनाव
पहला सही, दूसरा सही,
पहला और तीसरा सही,
चौथा सही पाँचवा सही;
अश्लीलता फूहड़ता और
हिंसा के दौर में
चुनाव अच्छे या बुरे का नहीं रहा
'टार्चर हो सकने की सहनशक्ति' का है.
तुम प्रियता
सांसारिक निजता
हिय दृष्टा हो
तुम अंतर्दिष्ट सखा हो
तुम अतीत का
नाम जप
तुम स्नेह का
प्रतीक्षित तप
मैं हूँ सूर तुम दृष्टा हो
तुम फाग
तुम ही फाग राग
अनछुआ रंग
कुसुमित पराग
मैं श्याम कमल तुम केसरिया हो
•कविता
मन की चारदीवारी से निकला
इमोशनल कंटेंट
•कविता
एक परिभाषा
‘टेम्पोरेरी’ की
•कविता
सरेंडर है प्रेम का
•कविता
लिखवाती है मुझसे
ख़ुद को
•कविता
रुचती है तो
चुभती भी है
•सबसे अच्छी वह कविता लिखी
जो अब तक लिखी ही नहीं गयी
•मेरी कविताएँ
तुम्हारे लिए लिखी गयी
मेरी चिट्ठियाँ हैं
पायी जायेंगी
युगों से कल्पों तक
बनी रहेंगी
मिटती सभ्यताओं में भी
सुरक्षित रहेंगी
बम, मिसाइल से
नहीं पकड़ पायेगा इन्हें
ड्रोन और रडार
लिखती हूँ
हर हिचकी पर एक कविता
मेरी स्याही का रंग
उसी तासीर का है
हमें जोड़े रखने वाला नेटवर्क
एक हिचकी
जाने कौन-कौन
पढ़ रहा होगा
भविष्य में प्रेम अपना
जाने कितनी तीव्रता का
विस्फोट हो
जब आम किया जाये
अपने प्रेम का
टाइम कैप्सूल
बस तुम यूँ ही रहना
मेरे सैटेलाइट में
जब चाहूँ तुम्हें देख सकूँ
राजनीति के रायते से प्रेम के गलियारे तक...
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कुछ भी नहीं सोचती मैं
तुम्हारे बारे में
न ही लेती हूँ
कोई इल्ज़ाम अपने सर.
न सुन पायी उसके मुँह से
कभी अपना नाम सरे राह
न ही हुई कभी हमबिस्तर
जब-जब तुम्हें लगा
कि तुम झमेलों में हो
मैं शिकन हटाती रही
उस माथे की
जिस पर बोसा
बस तुम्हारा हुआ.
तुम्हारा अधूरा प्रेम बनकर
नहीं मिला कभी वो मुझे,
वरन एक शिशु की तरह
जिसे माँ चाहिए
एक विद्यार्थी बनकर
जो शिक्षा की खोज में हो
उसे बुद्ध बनना है प्रेमी नहीं
वो मुझ तक
पुरुषार्थ लेकर नहीं आया,
अपने अंदर का पुरुष
हर बार
वह छोडकर तुम्हारे पास
आया यहाँ
जैसे नदी का पानी
जाता तो है समंदर तक
पर नदी लेकर नहीं
तुम भीगती हो उसमें
मैं तो बस भागती हूँ
हमारी कहानी में
कोई इच्छा नहीं है
कोई चेष्टा नहीं है
प्रत्याशा भी नहीं
एक संयोग से उपजी हुई
कोई पृष्ठभूमि जैसा
कुछ घटा हमारे मध्य
जैसे मिल जाती है
प्रतीक्षा की पीड़ा
किसी-किसी देहरी को
कैसे बाँध सकती हो तुम मुझे
घृणा के बंधन में
मेरी और तुम्हारी तुलना ही क्या
तुम तो
मेरे प्रणय काव्य के सौंदर्य का प्रत्येक भाग भी
स्वयं पर अनुभव कर रही होगी
और वो मेरे लिए
मेरे सुख के दिनों की कविता
एवं पीड़ा में प्रतीक्षा बन पाया
बस इतना सा आत्मसात किया मैनें उसे
अपने भीतर
फिर भी
वो कमीज पर लगा
कोई लिपिस्टिक का दाग नहीं
जो धोकर गायब कर दूँ,
हर शब्द में भाव बनकर
समाहित हो गया है मुझमें
मैं नहीं माँगने आयी किसी दरवाजे पर
‘आज खाने में क्या बना लूँ'
कहने का अधिकार
तुम भी मत चाहना कि मैं
उस पर उड़ेल दूँ 'विदा का प्यार’
मेरा भविष्य
मेरी देह के आकर्षण पर नहीं
शब्दों की संगत पर है
अश्रुओं का उल्कापात नहीं
पलाश की अनल बरसने दो
उसके लाये हुए हर पारिजात को
तुम्हारे चरणों की रज मिले
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