To explore the words.... I am a simple but unique imaginative person cum personality. Love to talk to others who need me. No synonym for life and love are available in my dictionary. I try to feel the breath of nature at the very own moment when alive. Death is unavailable in this universe because we grave only body not our soul. It is eternal. abhi.abhilasha86@gmail.com... You may reach to me anytime.
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खोज नतीजे
इंसानियत से इंसानियत तक
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ट्रैफिक सिग्नल पर ग्रीन लाइट का इंतज़ार करते हुए मेरी नज़र गाड़ी साफ करते लड़के पर गयी। कुछ जान-पहचाना चेहरा दिखते ही मैंने कार का शीशा खोला, "अरे मासूम तुम!" मुझे खुशी से चहकता देख मासूम मेरी कार विंडो के पास आ गया।
"दीदी आप, पहचान गयीं मुझे?" इतना कहते ही उसकी आंख में आँसू आ गए।
"क्यों नहीं पहचानूँगी तुझे...अच्छा ये बता हुस्ना कैसी है, और तूने ये हुस्ना का काम कब से शुरू कर दिया?"
"दीदी हुस्ना का उसके अब्बू ने घर से निकलना बंद कर दिया, आप तो जानती ही हैं सब कुछ।" इतना कहते ही वो फफक कर रो पड़ा।
मैंने मासूम से गाड़ी में बैठने को कहा और अनुभव से हुस्ना के घर चलने को। वहाँ से तकरीबन 30 मिनट की दूरी पर था।
गाड़ी हाई वे पर दौड़ रही थी और मैं अपनी यादों की हसीन गलियों में। यही कोई 5 साल पहले मुझे मेरे अब्बू ने कल्याण अपार्टमेंट के एक फ्लैट में जेल की तरह शिफ्ट कर दिया था वहाँ कोई इंसान तो दूर परिंदा भी पर नहीं मार सकता था। मेरा गुनाह ये था कि मैं एक हिन्दू लड़के से प्यार कर बैठी थी। पूरे 72 घण्टे बाद मुझे सामने वाले फ्लैट में एक लड़का पेपर डालते हुए दिखा। मेरे आवाज देने पर वो खिड़की के पास आ गया। पूछने पर पता चला वो हॉकर है, रोज नीचे से पेपर डालकर चला जाता था आज सामने से खिड़की बन्द थी तो ऊपर आ गया। मैंने एक चिट पर अपना फ्लैट नंबर और अपार्टमेंट का नाम लिखकर अनुभव का पता बताते हुए देने को कहा।
अगले दिन वो अनुभव का रिप्लाई लेकर आ गया साथ ही हुस्ना को अब्बू की गाड़ी साफ करने को लगा दिया। हुस्ना और मासूम की मदद से अनुभव ने एक सेल फ़ोन मुझ तक पहुंचाया। मैं बाहर तो नहीं जा सकती थी पर अनुभव तक अपने मेसेज पहुंचा सकती थी। हुस्ना और मासूम हमारा बहुत ख़याल रखते थे। मेरे पैदा होते ही अम्मी गुजर गई। अब्बू मुझे इस बात का दोषी अब तक मानते हैं। मुझे अनुभव में माँ-बाप हर किसी का प्यार दिखा और अब मासूम, हुस्ना तो मुझे अल्लाह के बंदे दिखे। हुस्ना गाड़ी साफ करती थी और मासूम हॉकर था। हुस्ना उन मासूमों में से एक थी जो अपनों में रहकर यौन-उत्पीड़न का दंश झेलते हैं। मासूम की पाकीज़गी पर वो फिदा थी। उसे पहली बार कोई ऐसा मर्द मिला था जो उसके जिस्म का दीवाना नहीं बल्कि मन का तलबगार था।
जैसे ही अनुभव की फाइनेंसियल क्राइसिस खत्म हुई, हमने शादी कर ली। अब्बू की रज़ामन्दी तो नहीं मिली दुवाएं भी न मिल सकीं। आज उन बातों को 5 साल बीत गए। इस दौरान मैं खुद में इतनी मशरूफ़ रही कि मासूम और हुस्ना से न मिल सकी। जबकि मैं और अनुभव अक्सर उन दोनों का जिक्र किया करते थे।
अचानक लगे ब्रेक से मैं हक़ीक़त में आ गयी। गाड़ी हुस्ना के घर के सामने वाली गली में थी। हम लोगों को इस तरह आया देख हुस्ना के अब्बू सहम गए। अनुभव को देख उनकी आँखों में मीडिया का भय दिखा। हुस्ना रोते हुए मुझसे लिपट गयी। मैंने उसके माथे को सहलाया। उसकी आँखों में यकीन दिख मुझे। हम हुस्ना को लेकर आ गए। वापिस आते एक अच्छा सा सुकून मिल रहा था मुझे पर एक सवाल ज़ेहन में था कि एक हुस्ना को तो मैंने आज़ाद करा दिया समाज तो ऐसी हुस्ना से पटा पड़ा है। वो खुली हवा में सांस लेने को छटपटा रही हैं कब चेतेंगे हम अपने कर्तव्यों के प्रति कि कोई हुस्ना अत्याचार सहने को मजबूर न हो?
"दीदी आप, पहचान गयीं मुझे?" इतना कहते ही उसकी आंख में आँसू आ गए।
"क्यों नहीं पहचानूँगी तुझे...अच्छा ये बता हुस्ना कैसी है, और तूने ये हुस्ना का काम कब से शुरू कर दिया?"
"दीदी हुस्ना का उसके अब्बू ने घर से निकलना बंद कर दिया, आप तो जानती ही हैं सब कुछ।" इतना कहते ही वो फफक कर रो पड़ा।
मैंने मासूम से गाड़ी में बैठने को कहा और अनुभव से हुस्ना के घर चलने को। वहाँ से तकरीबन 30 मिनट की दूरी पर था।
गाड़ी हाई वे पर दौड़ रही थी और मैं अपनी यादों की हसीन गलियों में। यही कोई 5 साल पहले मुझे मेरे अब्बू ने कल्याण अपार्टमेंट के एक फ्लैट में जेल की तरह शिफ्ट कर दिया था वहाँ कोई इंसान तो दूर परिंदा भी पर नहीं मार सकता था। मेरा गुनाह ये था कि मैं एक हिन्दू लड़के से प्यार कर बैठी थी। पूरे 72 घण्टे बाद मुझे सामने वाले फ्लैट में एक लड़का पेपर डालते हुए दिखा। मेरे आवाज देने पर वो खिड़की के पास आ गया। पूछने पर पता चला वो हॉकर है, रोज नीचे से पेपर डालकर चला जाता था आज सामने से खिड़की बन्द थी तो ऊपर आ गया। मैंने एक चिट पर अपना फ्लैट नंबर और अपार्टमेंट का नाम लिखकर अनुभव का पता बताते हुए देने को कहा।
अगले दिन वो अनुभव का रिप्लाई लेकर आ गया साथ ही हुस्ना को अब्बू की गाड़ी साफ करने को लगा दिया। हुस्ना और मासूम की मदद से अनुभव ने एक सेल फ़ोन मुझ तक पहुंचाया। मैं बाहर तो नहीं जा सकती थी पर अनुभव तक अपने मेसेज पहुंचा सकती थी। हुस्ना और मासूम हमारा बहुत ख़याल रखते थे। मेरे पैदा होते ही अम्मी गुजर गई। अब्बू मुझे इस बात का दोषी अब तक मानते हैं। मुझे अनुभव में माँ-बाप हर किसी का प्यार दिखा और अब मासूम, हुस्ना तो मुझे अल्लाह के बंदे दिखे। हुस्ना गाड़ी साफ करती थी और मासूम हॉकर था। हुस्ना उन मासूमों में से एक थी जो अपनों में रहकर यौन-उत्पीड़न का दंश झेलते हैं। मासूम की पाकीज़गी पर वो फिदा थी। उसे पहली बार कोई ऐसा मर्द मिला था जो उसके जिस्म का दीवाना नहीं बल्कि मन का तलबगार था।
जैसे ही अनुभव की फाइनेंसियल क्राइसिस खत्म हुई, हमने शादी कर ली। अब्बू की रज़ामन्दी तो नहीं मिली दुवाएं भी न मिल सकीं। आज उन बातों को 5 साल बीत गए। इस दौरान मैं खुद में इतनी मशरूफ़ रही कि मासूम और हुस्ना से न मिल सकी। जबकि मैं और अनुभव अक्सर उन दोनों का जिक्र किया करते थे।
अचानक लगे ब्रेक से मैं हक़ीक़त में आ गयी। गाड़ी हुस्ना के घर के सामने वाली गली में थी। हम लोगों को इस तरह आया देख हुस्ना के अब्बू सहम गए। अनुभव को देख उनकी आँखों में मीडिया का भय दिखा। हुस्ना रोते हुए मुझसे लिपट गयी। मैंने उसके माथे को सहलाया। उसकी आँखों में यकीन दिख मुझे। हम हुस्ना को लेकर आ गए। वापिस आते एक अच्छा सा सुकून मिल रहा था मुझे पर एक सवाल ज़ेहन में था कि एक हुस्ना को तो मैंने आज़ाद करा दिया समाज तो ऐसी हुस्ना से पटा पड़ा है। वो खुली हवा में सांस लेने को छटपटा रही हैं कब चेतेंगे हम अपने कर्तव्यों के प्रति कि कोई हुस्ना अत्याचार सहने को मजबूर न हो?
माँ बनना मुश्किल तो नहीं!
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माँ बनना इतना मुश्किल नहीं है
दर्द अहसासों में कहाँ गुम हो जाता है
किसे खबर रहती,
दिन उम्मीदों में
और रातें सपनों में हवा होती हैं,
जो नहीं है
उसके होने का अहसास
सर्दियों में खिली
मुट्ठी भर धूप की तरह है,
है तो अजन्मा
पर सोच की उँगली थामे
देखो न कहाँ खड़ा है;
हर दरख़्त के साये में
हर दीवार से बड़ा है,
जब नरम हथेलियों की गुनगुनाहट में
करवटें लेता है,
रोम-रोम खिल उठता है,
यूँ तो है सुरक्षित
मेरे अंदर नौ महीने,
पर सीने से लगा लूँ अभी
मन मचल उठता है:
कितना कलरव करता है अंदर
सिसकियां भी भरता है कभी,
घूमता है, फिरता है, पुकारता है
जैसे कहता हो
मुझे दुनिया देखनी है अभी;
पहले दिनों में होती थी
महीनों की गिनती
अब तो हर घण्टे हिसाब होता है,
तुम्हारे होने में हम दोनों
बस तुम्हारे हो गए
उनकी शिकायतें सर-आंखों पर
पर तुम सबसे प्यारे हो गए,
जब सुनाती हूँ उन्हें तुम्हारी धड़कन
दूरी हमारे
और भी करीब लाती है,
तुम सांस लेते हो मेरे भीतर
और खुशी हमारी मुस्कराती है:
इतना मुश्किल नहीं है माँ बनना
मैं तो महसूसना चाहती हूँ
तुम्हारे जन्म का पल
नींद का इंजेक्शन लेकर नहीं,
प्रसव-पीड़ा सहते हुए,
योनि-मार्ग से निकलते हुए,
तुम्हारा पहला रोना
मैं सुन सकूँ
इतना मुश्किल भी नहीं है
माँ बनना
मैं गर्व से कह सकूँ।
दर्द अहसासों में कहाँ गुम हो जाता है
किसे खबर रहती,
दिन उम्मीदों में
और रातें सपनों में हवा होती हैं,
जो नहीं है
उसके होने का अहसास
सर्दियों में खिली
मुट्ठी भर धूप की तरह है,
है तो अजन्मा
पर सोच की उँगली थामे
देखो न कहाँ खड़ा है;
हर दरख़्त के साये में
हर दीवार से बड़ा है,
जब नरम हथेलियों की गुनगुनाहट में
करवटें लेता है,
रोम-रोम खिल उठता है,
यूँ तो है सुरक्षित
मेरे अंदर नौ महीने,
पर सीने से लगा लूँ अभी
मन मचल उठता है:
कितना कलरव करता है अंदर
सिसकियां भी भरता है कभी,
घूमता है, फिरता है, पुकारता है
जैसे कहता हो
मुझे दुनिया देखनी है अभी;
पहले दिनों में होती थी
महीनों की गिनती
अब तो हर घण्टे हिसाब होता है,
तुम्हारे होने में हम दोनों
बस तुम्हारे हो गए
उनकी शिकायतें सर-आंखों पर
पर तुम सबसे प्यारे हो गए,
जब सुनाती हूँ उन्हें तुम्हारी धड़कन
दूरी हमारे
और भी करीब लाती है,
तुम सांस लेते हो मेरे भीतर
और खुशी हमारी मुस्कराती है:
इतना मुश्किल नहीं है माँ बनना
मैं तो महसूसना चाहती हूँ
तुम्हारे जन्म का पल
नींद का इंजेक्शन लेकर नहीं,
प्रसव-पीड़ा सहते हुए,
योनि-मार्ग से निकलते हुए,
तुम्हारा पहला रोना
मैं सुन सकूँ
इतना मुश्किल भी नहीं है
माँ बनना
मैं गर्व से कह सकूँ।
ये कहाँ आ गए हम!!!
महबूबा भले ऐश्वर्या सी दिला दो
मगर वर्चुअल है तो क्या
खुशियाँ पहाड़ सी भले ऊँची कर दो
मगर डिजिटल हैं तो क्या
हक़ीक़त से मिला दो हमें
हमको भी तो लिफ्ट करा दो
ज़िन्दगी हमारी वही अच्छी थी
कागज़ के नोट को थूक से गिनते थे
एक बड़े से मैदान में
चौपालों में सजते थे
तब एक हॉल में बीस होते थे
पता चलता था
अब दो सौ हों तो भी
सर झुके रहते हैं
ज़िन्दगी है तो शहद सी
पर नीम पे चढ़ी
हम दौड़ में आगे भाग रहे हैं
क्योंकि
हमारे साथ कोई नहीं
खुश हैं बहुत अपने आप मे
क्योंकि मंजिल का पता नहीं,
जब पहाड़ जैसे सपनों का
बौना सा अंत दिखता है
ज़िन्दगी का उम्बर घाट
मछली की मानिंद
तलहटी पर तड़पता है।
मगर वर्चुअल है तो क्या
खुशियाँ पहाड़ सी भले ऊँची कर दो
मगर डिजिटल हैं तो क्या
हक़ीक़त से मिला दो हमें
हमको भी तो लिफ्ट करा दो
ज़िन्दगी हमारी वही अच्छी थी
कागज़ के नोट को थूक से गिनते थे
एक बड़े से मैदान में
चौपालों में सजते थे
तब एक हॉल में बीस होते थे
पता चलता था
अब दो सौ हों तो भी
सर झुके रहते हैं
ज़िन्दगी है तो शहद सी
पर नीम पे चढ़ी
हम दौड़ में आगे भाग रहे हैं
क्योंकि
हमारे साथ कोई नहीं
खुश हैं बहुत अपने आप मे
क्योंकि मंजिल का पता नहीं,
जब पहाड़ जैसे सपनों का
बौना सा अंत दिखता है
ज़िन्दगी का उम्बर घाट
मछली की मानिंद
तलहटी पर तड़पता है।
ज़िन्दगी, तू ही तो है!
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वो तेरे जिस्म को छूती मेरी प्यासी ये निगाहें
न कोई और है रहबर, मांगे बस तेरी पनाहें
तू तो बस अब ही ठहर न किसी रोज़ न आ
मैं तो हूँ तुझमें ज़िबा तेरा कोई और ठिकाना
न कोई और है रहबर, मांगे बस तेरी पनाहें
तू तो बस अब ही ठहर न किसी रोज़ न आ
मैं तो हूँ तुझमें ज़िबा तेरा कोई और ठिकाना
उस रोज से प्यासी है ज़मीं
तेरी चाह बस वहीं थमीं
उस ओर ही टूटा था सितारा
जिस ओर मेरी आँखों ने
तुझे जी भरके निहारा
तेरी खुशबू, तेरा जादू
बस तेरी ही तेरी कमी
तू है तो कहीं
पर यहाँ तो नहीं
तेरी चाह बस वहीं थमीं
उस ओर ही टूटा था सितारा
जिस ओर मेरी आँखों ने
तुझे जी भरके निहारा
तेरी खुशबू, तेरा जादू
बस तेरी ही तेरी कमी
तू है तो कहीं
पर यहाँ तो नहीं
मैं तेरे दर्द की शहनाई पे दिल अपना रख दूँ
हो तेरा कोई ख्वाब अधूरा उसे पूरा कर दूं
मुझे ज़ीनत न समझ दिल की ये इनायत कर
तुझे चाहूं मैं बेसबब, खुद को ज़िंदा कर दूं
हो तेरा कोई ख्वाब अधूरा उसे पूरा कर दूं
मुझे ज़ीनत न समझ दिल की ये इनायत कर
तुझे चाहूं मैं बेसबब, खुद को ज़िंदा कर दूं
ये गुलशन भी खामोश है
तेरी हर अदा पर फिदा
छू ले एक बार मेरा दर्द
सुकूँ हो जाये
मैं जागती रहूँ तुझमें
और ये रात हममें सो जाए
ये खिला-खिला सा तू
वक़्त दे बस इतना सुकूँ
तेरी हर अदा पर फिदा
छू ले एक बार मेरा दर्द
सुकूँ हो जाये
मैं जागती रहूँ तुझमें
और ये रात हममें सो जाए
ये खिला-खिला सा तू
वक़्त दे बस इतना सुकूँ
मुझको देता है तू हर रोज़ गुनाहों की सजा
मैं चीर के दिल रख दूँ, तू गुनाह तो बता
तुझको चाहा है, बस चाहा है और चाहा है तुझे
ये गुनाह है तो आकर दे दे एक रोज़ सजा
मैं चीर के दिल रख दूँ, तू गुनाह तो बता
तुझको चाहा है, बस चाहा है और चाहा है तुझे
ये गुनाह है तो आकर दे दे एक रोज़ सजा
लम्हा-लम्हा मरती हूँ मैं
बस एक लम्हे के लिए
मैं छोटी सी नदी
वो सैलाब तेरी मोहब्बत का
मैं बह तो गयी
पर फना होकर
बस एक लम्हे के लिए
मैं छोटी सी नदी
वो सैलाब तेरी मोहब्बत का
मैं बह तो गयी
पर फना होकर
दे वो लम्हा, मैं चाहूँ तुझे ये गंवारा कर ले
तेरी आँखों में सिमट जाए, ख़्वाब हमारा कर ले
है तेरे सुरूर की हसरत और बस दीवानगी तेरी
तू मेरे दिल का हो रहबर सितम भले सारा कर ले
तेरी आँखों में सिमट जाए, ख़्वाब हमारा कर ले
है तेरे सुरूर की हसरत और बस दीवानगी तेरी
तू मेरे दिल का हो रहबर सितम भले सारा कर ले
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