जीवित शिलालेख

उस रोज़ मर गयी थी माँ
लोग सांत्वना दिए जा रहे थे,
'सब ठीक हो जाएगा
मत परेशान कर ख़ुद को...'
कुछ भी ठीक नहीं हुआ
क्योंकि कुछ ठीक होने वाला नहीं था
वो देह भर गरीबी अर्जित कर
कूच जो कर गयी थी.
ऐसे ही जब मरे थे बापू
कुछ भी नहीं था तब
सांत्वना भी नहीं!
काकी, ताई, दाऊ, दद्दा...
सब इसी तरह जाते रहे.
ग़रीब के हिस्से आता ही क्या है
अलावा जिल्लत के?
अब मुझे मौत से डर नहीं लगता,
रात के अँधेरों से डर नहीं लगता,
दर्द की नग्नता से डर नहीं लगता,
मेरे भीतर का मौन कचोटता नहीं है मुझे
मैं वो जीवित शिलालेख बन चुकी हूँ
जिस पर बादल बरसकर भी नहीं बरसते,
हवा का ओज कौमार्य भर देता है
निष्प्राण देह में,
काल भृमण करता है मुझ पर
मेरी उम्र बढ़ाने को...

12 टिप्‍पणियां:

kuldeep thakur ने कहा…


जय मां हाटेशवरी.......
आप को बताते हुए हर्ष हो रहा है......
आप की इस रचना का लिंक भी......
20/10/2019 रविवार को......
पांच लिंकों का आनंद ब्लौग पर.....
शामिल किया गया है.....
आप भी इस हलचल में. .....
सादर आमंत्रित है......

अधिक जानकारी के लिये ब्लौग का लिंक:
http s://www.halchalwith5links.blogspot.com
धन्यवाद

Meena Bhardwaj ने कहा…

मर्मस्पर्शी सृजन ।

सुशील कुमार जोशी ने कहा…

मार्मिक अभिव्यक्ति

Pooja Mishra ने कहा…

You have written beautifully. Keep writing.

पुरुषोत्तम कुमार सिन्हा ने कहा…

अत्यंत ही भावपूर्ण रचना । मन को भा गई ।

Sudha Devrani ने कहा…

दर्द से खूगर हुआ इंसा तो मिट जाता है दर्द....
बहुत ही हृदयस्पर्शी रचना।

Sudha Devrani ने कहा…

दर्द से खूगर हुआ इंसा तो मिट जाता है दर्द....
बहुत ही हृदयस्पर्शी रचना।

Roli Abhilasha ने कहा…

देर से पढ़ने के लिए क्षमा चाहती हूँ.
बहुत आभार आपका 🙏

Roli Abhilasha ने कहा…

आभार मीना जी!

Roli Abhilasha ने कहा…

बहुत आभार!

Roli Abhilasha ने कहा…

Thanks much!

Roli Abhilasha ने कहा…

बहुत ख़ूब.... शुक्रिया!

मेरी पहली पुस्तक

http://www.bookbazooka.com/book-store/badalte-rishto-ka-samikaran-by-roli-abhilasha.php