दो क्षणिकाएँ

१. तुम आग हो
तो मैं एक रसायन
आओ मिलकर बनाते हैं
जैविक हथियार
और समूचे ब्रह्मांड में
फैला देते हैं
प्रेम का वायरस.


२. प्रतीक्षा है मुझे
उस दिन की
जब पृथ्वी
अपना गुरुत्व खो देगी
और मैं
तुम्हारा हाथ थामकर चलूँगी
तुम्हें मंगल ग्रह तक छोड़ने…

2 टिप्‍पणियां:

Onkar ने कहा…

सुन्दर रचना

रेणु ने कहा…

अहा ! प्रे अनुराग् रत मन की सीमाएं कहाँ तक होती हैं नहीं पता | पर ये प्रेम अद्भुत है | सराहना से परे !!!!!!!!!!!!!!

मेरी पहली पुस्तक

http://www.bookbazooka.com/book-store/badalte-rishto-ka-samikaran-by-roli-abhilasha.php