जब कभी गुज़रोगी मेरी गली से
तो मेरी पीड़ा तुम्हें किसी टूटे प्रेमी का
संक्षिप्त एकालाप लगेगी
पूरी पीड़ा को शब्द देना कहाँ सम्भव?
मैंने तो बस इंसान होने की तमीज़ को जिया है
अपनी कविताओं के ज़रिए...
मन के गहन दुःख को जो व्यक्त कर सकें
वो सृजन करने का मुझमें साहस कहाँ?
डूबते सूरज की छाया में मैं मरघट लिखूँगा
तुम अपने स्मित की अंतिम स्मृति पढ़कर चली जाना.
8 टिप्पणियां:
सुन्दर
बहुत अच्छी कविता
जय मां हाटेशवरी.......
आप को बताते हुए हर्ष हो रहा है......
आप की इस रचना का लिंक भी......
07/03/2021 रविवार को......
पांच लिंकों का आनंद ब्लौग पर.....
शामिल किया गया है.....
आप भी इस हलचल में. .....
सादर आमंत्रित है......
अधिक जानकारी के लिये ब्लौग का लिंक:
https://www.halchalwith5links.blogspot.com
धन्यवाद
गहन पीड़ा अभिव्यक्त हो रही । भावपूर्ण ।
आभार!
आभार!
स्नेहिल आभार!
आभार!
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