अब इसे कोरापुट के फिल्मांकन का असर ही कहेंगे कि "मल्हारा" के बहाने सभी अपनी भावनाओं को खंगाल रहे हैं. कौन कहता कि समय के साथ प्रेम मुरझा जाता है ये तो और प्रगाढ़ हो जाता है. प्रेमी हमारा मल्हारा बन जाता है, हृदय का प्रीत राग झंकृत होता है जब उसकी आमद होती है. उस नेह को चूमने अकुलाई बारिश की बूँदे आकर गले लगती हैं.
इस प्रीत राग को शब्द दिए हैं, शब्दों के जादूगर अनूप कमल अग्रवाल "आग" ने. विश्वास नहीं होता कि बरखा और आग का संगम अनवरत चलेगा. लेकिन ये प्रयोग सफल रहा है ये इस गीत की चढ़ती लोकप्रियता बता रही है.
कविराज को गीतकार बनने की बधाई एवं अनन्त शुभकामनाएं!
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