शहादत पर हर बरस
मेले लगाने से पहले
पूँछ लेना उस माँ से
कैसे कलेजा जला था,
पूँछना हर शमा को
जलाने से पहले
कैसे उस सुहागिन का
सिंदूर मिटा था,
पूँछना ये टूटने से पहले
कहाँ गया उम्मीद बनकर
कलाई पर बहन की
जो धागा बंधा था,
शहादत कोई इनाम नहीं है
शहीद कोई नाम नहीं है
ये तो बस एक दिलासा है
आज कक्षा में
बच्चों को पढ़ाया जाने वाला
एक दिन का सबक,
प्रतिमाओं के आस-पास
चौराहों पर होने वाला
एक आयोजन मात्र,
23 मार्च के नाम पर
सबसे बड़ा भाषण देने वाले
महोदय से
बस एक बार पूंछना होगा
क्या अपने घर में
कोई भगत सिंह देखना चाहेंगे
बजाय अम्बानी, सहारा
सचिन, मोदी के???
आज के भगत सिंह, सुखदेव
और राजगुरु को
एक अघोषित युद्ध लड़ना होगा
स्वयं के विरुद्ध,
भ्रष्टाचार, अनैतिकता
और गन्दी राजनीति के विरूद्ध।
To explore the words.... I am a simple but unique imaginative person cum personality. Love to talk to others who need me. No synonym for life and love are available in my dictionary. I try to feel the breath of nature at the very own moment when alive. Death is unavailable in this universe because we grave only body not our soul. It is eternal. abhi.abhilasha86@gmail.com... You may reach to me anytime.
एक युद्ध स्वयं के विरुद्ध
शून्य से पहले
दायरारहित सोच के
बाहर का दायरा,
कल्पनारहित उड़ान के
बाद की कल्पना,
दर्दरहित जीवन के
अंत का दर्द,
प्रेमरहित मन के
पतझड़ का प्रेम,
गतिरहित आशा के
स्थिरता की आशा,
पड़ावरहित सफर के
दूरन्त का पड़ाव,
....महज कोरी कल्पनाएं नहीं
ये तो एक विराम है
शून्य है
इसके बाद स्थान लेती है
ऋणात्मकता....
मत जाइए शून्य तक
मत खोजिए नकारात्मकता
जीवन अंटार्कटिका नहीं यूरेशिया है
क्योंकि हर जीव पोलर बियर नहीं
कुछ मानव भी हैं।
खुशी बांटते रहिए
मुस्कान मन की आभा है
अधरों पर सजाकर रखिए
हो न ये मन अपनों से खाली
रिश्ते सभी से निभाकर रखिए
ये दुनिया है छोटा घरौंदा हमारा
न टूटे कि इसको बचाकर रखिए
है सुबह जो अपनी तो शाम भी है
रूठे वक़्त से भी अब बनाकर रखिए
साथ चलने से ही तो कारवां बनता है
बांटिए खुशी दर्द को मुस्कराकर रखिए।
20 मार्च: अंतरराष्ट्रीय खुशी दिवस
संयुक्त राष्ट्र संगठन ने वर्ष 2013 में ये दिवस मनाने की घोषणा की। आइये हम सब मिलकर आज का दिन मनाते हैं।
चचा लखनऊ उवाच 1
दो शेर
उनके तन्हा होने का उन्हें सबब क्या पता
रिश्ते तो मर गए मगर दफनाए नहीं गए।
दिल की बंजर जमीं थी पर मोहब्बतों के फूल खिल तो गए,
अहसास की नमी हवा हो गयी, वहाँ कैक्टस के गुलिस्तां मिले।
प्रेरणापुंज कल्पना को नमन
एंटीक पीस हूँ मैं....
कभी फ़िकर नहीं करती
कि कैसी दिखती हूँ मैं
मुझे परवाह है तो इतनी
कि तुम कैसे देखते हो मुझे
मैं
रंग और नूर की
बारात का हिस्सा तो नहीं हूँ
मग़र
कोई अधूरा किस्सा भी नहीं।
मैं
नवाबों के शहर की
शान तो नहीं
पर गुमनाम भी नहीं हूँ,
मैं
मूक ही सही
वाचाल तो शब्द हैं मेरे,
मुझमें
रंगीनियां कब हैं जमाने की
सादगी में लिपटी
श्वेत-श्याम तस्वीर हूँ मैं,
सूरत में
नहीं हूँ
मैं तो
सीरत में हूँ,
खुद के लिए
कब थी मैं
मग़र
सभी की
जरूरत में हूँ,
बादशाहत के किस्सों से
बाहर हूँ
बस
अपने मन की
मुमताज़ हूँ,
जो पढ़ी जा सके
वो
किताब नहीं हूँ
फ़क़त
दास्तां हूँ
अहसासों की
सबके दिलों की
आवाज़ हूँ मैं,
ज़र्रा-ज़र्रा
जीती हूँ
दर्द में
मरती हूँ
हर पल,
हवाओं सी
बहती हूँ
झरनों सी
करती हूँ
कल-कल,
जब
प्रेम की
फुहारें बरसती हैं
खिल जाती हूँ
बनकर
इंद्रधनुष,
मार्तंड सा
तपती हूँ
बर्फ सा पिघलकर
जब
रुदन करती हूँ
आकाश
नाचता है
धरती के
स्पंदन पर।
दुःख में सत्य चीखता है...
दुःख रात का वो पहर नहीं जहाँ नितांत अंधेरा है
दुःख तो वो पल है जब आपके कदम ठहर जाएं
दुःख वो कहर नहीं जहाँ उम्मीदें टूटती हैं
दुःख तो वो जहर है जिसे पीकर आप उम्मीद करना छोड़ दें
दुःख बियाबान जंगल नहीं
दुःख तो वो छाँव है जहाँ आप दिशा भटक जाएं
दुःख वो नहीं जो किसी के चले जाने पर हो
दुःख तो किसी के साथ होते हुए भी न अपनाने पर है
दुःख वो नहीं जो हताश कर दे
दुःख तो वो है जो आशा को निराश कर दे
दुःख वो नहीं जब अन्न न मिले
दुःख तो वो है कि आपके पास अन्न हो और सेवन न कर सकें
दुःख वो नहीं जब आपके पाँव में जूते न हो
दुःख तो वो है कि जूते पहनने को पाँव न हो।
प्रिय को पत्र
तेरा-मेरा साथ
चुटकी भर सिंदूर
और मंगलसूत्र
बाँध देते हैं परिणय सूत्र में,
अग्नि के सात फेरे
देते हैं साथ चलने का साहस,
मंत्रो की वैदिक ऋचाएँ
बनती हैं एक-दूजे की आवाज़ें,
दो अजनबी मन
पास आने से पहले
लेते हैं सात वचन,
आकाश तभी तो झुकता है आशीष को
जब धरती पाँव पखारती है,
सुहागरात का प्रणय
कब समर्पण बन जाता है
अल्हड़ मन
घूँघट की ओट से रीझता है
बिना समझे ही हर मन
परिपाटी निभाता है,
विदा तो हर बार बस
बेटियाँ ही होती हैं
पर संस्कारों में
किसी और देहरी का
मान बढ़ाने को।
मेरी पहली पुस्तक
http://www.bookbazooka.com/book-store/badalte-rishto-ka-samikaran-by-roli-abhilasha.php
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प्रेयसी बनना चाहती है वो पर बिना पहले मिलन प्रेम सम्भव ही कहाँ, सुलझाते हुए अपने बालों की लटें उसे प्रतीक्षा होती है उस फूल की जो उसका...