एंटीक पीस हूँ मैं....


कभी फ़िकर नहीं करती
कि कैसी दिखती हूँ मैं
मुझे परवाह है तो इतनी
कि तुम कैसे देखते हो मुझे
मैं
रंग और नूर की
बारात का हिस्सा तो नहीं हूँ
मग़र
कोई अधूरा किस्सा भी नहीं।
मैं
नवाबों के शहर की
शान तो नहीं
पर गुमनाम भी नहीं हूँ,
मैं
मूक ही सही
वाचाल तो शब्द हैं मेरे,
मुझमें
रंगीनियां कब हैं जमाने की
सादगी में लिपटी
श्वेत-श्याम तस्वीर हूँ मैं,
सूरत में
नहीं हूँ
मैं तो
सीरत में हूँ,
खुद के लिए
कब थी मैं
मग़र
सभी की
जरूरत में हूँ,
बादशाहत के किस्सों से
बाहर हूँ
बस
अपने मन की
मुमताज़ हूँ,
जो पढ़ी जा सके
वो
किताब नहीं हूँ
फ़क़त
दास्तां हूँ
अहसासों की
सबके दिलों की
आवाज़ हूँ मैं,
ज़र्रा-ज़र्रा
जीती हूँ
दर्द में
मरती हूँ
हर पल,
हवाओं सी
बहती हूँ
झरनों सी
करती हूँ
कल-कल,
जब
प्रेम की
फुहारें बरसती हैं
खिल जाती हूँ
बनकर
इंद्रधनुष,
मार्तंड सा
तपती हूँ
बर्फ सा पिघलकर
जब
रुदन करती हूँ
आकाश
नाचता है
धरती के
स्पंदन पर।

कोई टिप्पणी नहीं:

मेरी पहली पुस्तक

http://www.bookbazooka.com/book-store/badalte-rishto-ka-samikaran-by-roli-abhilasha.php