वेदना की देहरी पर मृत्यु का आभास करने
पीर की हल्दी सजाए, तुमको आना ही पड़ेगा
शुष्क साँसे थम रही हैं, शब्दों का तुम पान दो
भींच कर छाती से मुझको, अधरों पे मेरा नाम लो
किस घड़ी ये साँस छूटे, देह हो पार्थिव मेरी
पुष्प लेकर अंजलि में, शूल का आभास करने
प्रेम का रिश्ता निभाए, तुमको आना ही पड़ेगा
न कोई मंगल की बेला, न शहनाई का शोर हो
न हो कोई डोली विदा की, न चतुर्शी की भोर हो
छोड़ूँ जब बाबुल की नगरी तुम डगरिया में मिलो
नेह के अंतिम क्षणों में बस मिलन का विषपान हो
तीस्ते नीले गरल में, अमिय का आभास करने
हिय, दर्द के बंधन छुपाए तुमको आना ही पड़ेगा
ये धरा साक्षी समर की, प्रेम से पावन है नभ
हैं जलिधि का नीर आँखें, आशीष देते गिरि सब
आए आचमन को पयोधि, पवन अस्थियों के तर्पण को
आग के श्रंगार तक रुक जाना तुम विसर्जन को
वेदना के इन क्षणों में, वेदना का ह्रास करने
रति की वाणी मुख लगाए, तुमको आना ही पड़ेगा.