हमारा इतिहास प्रकाण्डता से कितना परिपूर्ण है इसका आभास पिछले पन्ने खोलकर देखने पर होता है. कालिदास, हां यह एक ऐसा नाम है जिनकी कल्पना करने पर सहसा हमें मूर्धन्यता से विद्वानता तक की राह याद आती है. हम सुमिरन कराते चलें कि कालिदास की गणना इतिहास के उन मूर्खों में की जाती है, जिनका विवाह संस्कृत भाषा की प्रकांड विदुषी विद्योत्तमा से हुआ. अनजाने में हुए विवाह से विद्योत्तमा को बहुत ठेस पहुंचती है और वह एक मूर्ख को अपना पति स्वीकार न करके उन्हें घर से निकाल देती हैं साथ ही यह भी कहती हैं कि मेरे पास आना तो विद्वान बनकर आना. मूर्ख कालिदास ने सच्चे मन से काली देवी की आराधना की और उनके आशीर्वाद से विद्वान बन गए. विद्योत्तमा की धिक्कार को उन्होंने नकारात्मक न लेकर सकारात्मक लिया और उन्हें ही अपना पथ प्रदर्शक एवं गुरु माना.
कालिदास के जीवन से दो बातों की गहन शिक्षा मिलती है… पहली तो ये कि पथ कितना भी दुर्गम हो, गन्तव्य तक पहुंचना असम्भव नहीं. दूसरी शिक्षा यह कि मौन व्याकुलता और विकलता से परे एक ऐसी शक्ति है जो किसी के भी मनोभावों को कई अर्थ में प्रवाहमान रख सकता है. हम किसी के मौन को अपना गुरु मान लें और सकारात्मक सोच पर चलना प्रारम्भ कर दें तो अजेय रह सकते हैं.
सुनना यदि श्रेष्ठ है तो मौन की अनुभूति श्रेष्ठतम.
14 टिप्पणियां:
वाह क्या सुंदर लिखावट है सुंदर मैं अभी इस ब्लॉग को Bookmark कर रहा हूँ ,ताकि आगे भी आपकी कविता पढता रहूँ ,धन्यवाद आपका !!
Appsguruji (आप सभी के लिए बेहतरीन आर्टिकल संग्रह) Navin Bhardwaj
सुंदर संदेश देती रचना।
बहुत-बहुत आभार आदरणीय ��
आभार आदरणीय ��
इतने महान विद्वान की मृत्यु बहुत दर्दनाक हालात में हुई, वह भी देश के बाहर
कालिदास पर सार्थक लेखन
सुन्दर सन्देश
स्नेहिल आभार मीना जी 🙏
जी सही कहा आपने 🙏
बहुत बहुत आभार आपका 🙏
आभार आपका 🙏
बहुत सुंदर और सार्थक सृजन
आभार आपका 🙏
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