शब्दों की छुअन और मैं


तुम्हारा हाथ अपने हाथों में लेकर
सदियों तक बैठना चाहती हूँ तुम्हारे पास
और तुमसे पूछना चाहती हूँ वो सब कुछ
जो मैं तुम्हें पढ़ते हुए महसूस कर पाती हूँ…
कैसे उतरती हैं मुंडेरें छत से
शाम की ढलती धूप में,
कैसे कागज रोता है शब्दों से गले लगने को,
कैसे प्रेमी की आँखों में रात होती है,
कैसे सपने मुरझाकर आकाश की हथेली पर
हल्दी रखते हैं सूरज वाली,
कैसे देख सकते हो आसमान में लाल रंग उतरना,
सियाह रात में धनक का खिल जाना,
खिलती होगी पलाश से
जंगल की आग
मैं तो तुम्हारे भावों की बिछावन पर
मन सेकती हूँ.
कैसे तुम शब्दों को इतना प्रेम सिखा पाते हो!
इन्हें पढ़ते ही इनसे कर बैठती हूँ आलिंगन
गोया तुम यहीं हो
और मैं... 
मैं तो बस स्नेह की कठपुतली
जिसकी डोर तुम्हारे शब्दों ने
अपनी उंगलियों में फंसा रखी है
जितना चाहो हँसती हूँ
जितना चाहो रोती हूँ
यह तुम्हारे शब्द भी ना
जाने इतने जीवित से क्यों होते हैं!
कभी-कभी पीछे से आकर
अचानक कंधे पर हाथ रख देते हैं
जब मुड़कर देखती हूँ
तो आंखें फिरा लेते हैं
ये तुम्हारे शब्द पसंद करते हैं
मेरी आंखों से चूमा जाना
इन्हें भाता है मेरे दर्द का जिमाना
मगर कहते नहीं कभी मुकर जाते हैं
कि बोल भी सकते हैं.

11 टिप्‍पणियां:

अनीता सैनी ने कहा…

जी नमस्ते ,
आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल रविवार(२१ -०६-२०२०) को शब्द-सृजन-26 'क्षणभंगुर' (चर्चा अंक-३७३९) पर भी होगी।
आप भी सादर आमंत्रित है
--
अनीता सैनी

अनीता सैनी ने कहा…

जी नमस्ते ,
आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल रविवार(२१ -०६-२०२०) को शब्द-सृजन-26 'क्षणभंगुर' (चर्चा अंक-३७३९) पर भी होगी।
आप भी सादर आमंत्रित है
--
अनीता सैनी

सुशील कुमार जोशी ने कहा…

वाह

Rakesh ने कहा…

सुन्दर सृजन

गिरिजा कुलश्रेष्ठ ने कहा…

वाह , शब्दों का प्रभाव अद्भुत होता है लेकिन तभी जब आपके हृदय में प्रेम हो .

मन की वीणा ने कहा…

बहुत सुंदर सृजन।

Roli Abhilasha ने कहा…

क्षमाप्रार्थी हूँ देर से देख पा सकने के कारण.
बहुत आभार आपका 🙏

Roli Abhilasha ने कहा…

बहुत-बहुत शुक्रिया आपका 🙏

Roli Abhilasha ने कहा…

धन्यवाद आपका.

Roli Abhilasha ने कहा…

बहुत ढेर सारा धन्यवाद.

Roli Abhilasha ने कहा…

आभार एवं स्नेह

मेरी पहली पुस्तक

http://www.bookbazooka.com/book-store/badalte-rishto-ka-samikaran-by-roli-abhilasha.php