बहुत प्यार करने लगे हैं हम तुम्हें
जाने कितने दिनों से दिल में
चल रहा है बहुत कुछ
और कोई बात नहीं होती
कोई और होता भी नहीं वहाँ
इस तरह रहने लगे हो हमारे दिल में
कि हमें भी रहने नहीं देते हो अपने साथ
किए रहते हो अलग-थलग जैसे
हवा की आहट पर झाड़ देता हो
कोई पत्ता अपनी देह की धूल
बात-बात पर कर देते हो हमें अपनी
उन मुस्कुराहटों से विस्थापित
जिनके इंतज़ार में गीली रहती हैं कोरें
तुम्हारी सवा किलो की यादें
और एक मन का दर्द…
कभी रुको न हमारे सामने घड़ी दो घड़ी
तो देख लें मन भरकर तुम्हें
चूम लें तुम्हारे होने को
कभी कहो न कुछ…
क्यों कहें हम, कितना प्यार है तुमसे
खोल तो दी है हमने अपनी
इच्छाओं की सीमा
विचरण कर रहा है प्रेमसूय अश्व
हमें स्वीकार है तुम्हारी सत्ता
हम निहत्थे ही आयेंगे तुमसे परास्त होने
एक बार चलाओ अपना प्रेम शस्त्र.
PC: Google