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जाने क्यों!

 



जब सार्थक हो मौन

तो माप आता है

आकाश गंगा से लेकर

पृथ्वी की बूँदों का घनत्व,

समझ आता है

दिव्य भाव-भंगिमाएँ,

तुला पर रख गुज़रता है

अकाट्य तर्क

....

अगर असफल होता है

तो बस

प्रेम का उतार चढ़ाव पढ़ने में.

जाने क्यों नहीं पढ़ पाता

प्रेमिका का निःछल मन!

14 टिप्‍पणियां:

अनीता सैनी ने कहा…

जी नमस्ते ,
आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल बुधवार (०७-०७-२०२१) को
'तुम आयीं' (चर्चा अंक- ४११८)
पर भी होगी।
आप भी सादर आमंत्रित है।
सादर

जिज्ञासा सिंह ने कहा…

सुंदर भावों का अनूठा सृजन।

Onkar ने कहा…

बहुत सुन्दर

Anupama Tripathi ने कहा…

हृदय की पीड़ा को सुन्दर शब्द दिये! सुन्दर भाव!

आलोक सिन्हा ने कहा…

बहुत बहुत सुन्दर सराहनीय रचना

PRAKRITI DARSHAN ने कहा…

बहुत ही अच्छी और गहन पंक्तियां।

मन की वीणा ने कहा…

बहुत सुंदर!मन में पीड़ा के एहसास समेटे भाव पूर्ण सृजन।

Jyoti Dehliwal ने कहा…

बहुत सुंदर अभिव्यक्ति।

Roli Abhilasha ने कहा…

हृदयतल से आभार माननीय

Roli Abhilasha ने कहा…

आभार आपका!

Roli Abhilasha ने कहा…

आभार!

Roli Abhilasha ने कहा…

आभार!

Roli Abhilasha ने कहा…

बहुत आभार आपका!

Swapan priya ने कहा…

Lovely..Soulful..💞💞

मेरी पहली पुस्तक

http://www.bookbazooka.com/book-store/badalte-rishto-ka-samikaran-by-roli-abhilasha.php