इस सदी का ब्रह्मचर्य
एक मात्र प्रेम ही तो है.
प्रेम कौमार्य नहीं भंग करता
सौहार्द्र बढ़ाता है,
संकीर्णता के
जटिल मानदण्डों को तोड़कर
समभाव की अनुभूति कराता है.
अब निकलना होगा प्रेम को
किताबों से, ग्रंथों से
और हम सभी के मन से भी बाहर…
यदि कम करनी है
दूरी हृदयों के मध्य की
तभी तो रुक सकेंगे ग्लेशियर पिघलने से
जब सम्पूर्ण को देखने की
हम सभी की दृष्टि एक ही होगी
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