स्मृति

 •स्मृति क्या है?


°बीते हुए कल के शोर की प्रतिध्वनि


•शोर क्यों स्वर क्यों नहीं?


°जिस प्रकार हमारी सूक्ष्म देह होती है ठीक उसी प्रकार सूक्ष्म कान भी। स्वर उनसे टकराये भी तो हम विचलित नहीं होते और उनके बारे में बार-बार नहीं सोचते


•हमारी स्मृति में कुछ बातें ही क्यों होती हैं, सब क्यों नहीं?


°जिन बातों के लिए हमारा मन अति संवेदनशील होता है, वही बातें हमारे मन में अनवरत चलती रहती हैं


जीवन का सत्य• भाग (1)

हम मानने में
विश्वास रखते हैं
सच मानना हो,
किसी रिश्ते को मानना हो
अथवा गणित का एक्स
हमने माँ के गर्भ में
स्वयं को नहीं देखा
पर सभी ने जिन्हें माँ कहा
हमने माना
पिता ने हमें
जन्मते नहीं देखा
परिचारिका ने मुझे
उनकी गोद में डालते हुए
मुँह मीठा कराने को कहा
पिता जी ने मान लिया;
इस मानने में
मन ने सदैव
प्रश्न नहीं प्रेम किया,
संदेह नहीं
विश्वास किया

क्रमशः

चंद क्षणिकाएँ

 



•प्रेम

ऐश्वर्य के पाँव में पड़े

छालों का नाम है


•नदियाँ धरा का सौंदर्य हैं

और पड़ाड़ो तक पहुँचने का

सुगम मार्ग


•दर्द के मार्ग पर

चलते हुए

प्रिय का प्राकट्य होता है


•कोई तो है

जो इस सृष्टि पर

दृष्टि रखे है


•प्रेम में

तुम्हें याद करना ही

मेरे प्रेम की अधिकतम सामर्थ्य है


आख़िरी से पहले की ख्वाहिशें

"मैं तुमसे बात नहीं कर पाऊँगा, हाँ ये जानता हूँ तुम मुझसे बहुत प्यार करती हो और शायद यही वजह भी है"

"ठीक है तुम शब्दों में लिखते रहना, मैं आँखों से चूम लिया करुँगी, जीती रहूँगी अपने आप में तुम्हारी होकर"

"मुझे अफसोस है कि मैं कभी तुम्हारे सामने भी न आ पाऊँगा"

"मैं अपने आज़ाद ख़यालों में पा लिया करुँगी तुम्हारी झलक"

"कब तक बनाती रहोगी उम्मीद के मक़बरे?"

"तुम्हारे ख़यालों में तर साँसों के चलने तक"

"फिर?"

"फिर थोड़ी सी मुझे ज़मींदोज कर देना वहाँ, जहाँ चूमते हैं ये पाँव अलसुबह की ओस. महसूस लूँगी हर रोज तुम्हारी छुअन, थोड़ी सी मुझे जला देना उस पेड़ की लकड़ियों संग जिसे सींचा है तुम्हारे बचपन ने, गले लगाया है तुम्हारे यौवन ने, अपने आँसुओं से भिगोयी हैं जिसकी पत्तियाँ तुमने, मेरी हड्डियों से बनाना काला टीका… जो लगाया जाये प्यार भरी पेशानी पर. बाक़ी बची मुझ से बनाना एक नजरबट्टू..जहाँ भी रहो तुम मेरी आज़ाद रुह के साथ वहाँ रखना.
पूरी कर देना मेरी आख़िरी से पहले की ख्वाहिशें"

"----?----"

"मेरी आखिरी ख्वाहिश तो बस 'तुम' है"

तिल वाला लड़का

उसके दायें कंधे पर तिल नहीं था मगर ये तो बस उसे पता था. मुझे इतना मालूम है कि आज लिखने की मेज पर जब बैठी तभी अचानक मेरे मन में एक रुमान उभरा...अगर प्रेमी के दायें कंधे पर तिल हो, प्रेमिका अपने होंठ उस पर रखे तो प्रेमी के मन की सिहरन मेरी कविता के पन्नों को कितना गुलाबी कर सकेगी...
फिर क्या लोगों ने आँखों के खंजर से कुरेदना शुरु किया अब उसके दायें कंधे पर तिल होने से कौन रोक सकता है. तिल काला हो, भूरा हो या लाल क्या फर्क पड़ता, गुलाबी मोहब्बत ने तो जन्म ले लिया.
वो मोहब्बत नहीं जो दिल से आँखों में उतरकर स्याही बनी बल्कि वो मोहब्बत जो क़ागज़ पर बिन आग के धुएँ सी जली. हाँ, ये और और बात है कि तुम अपनी गर्दन पर हाथ फेरकर सोच रहे होगे कि कहानियों के रुमान में भीगी पागल सी लड़की कहीं इसी तिल की बात तो नहीं कर रही!

जिज्ञासा

रात क्या है?
शाम की पाती
जो सुबह तक
ख़ुद ही
चलकर आती

सुबह क्या है?
ईश्वर के
विश्वास का
टूटता हुआ तारा

विश्वास क्या है?
किसी की
परेशानी सुनकर
हाथों का यकायक
एक-दूसरे से जुड़ जाना

हाथ क्या है?
हमारी मौजूदगी का
विस्तार
जिसके भीतर
दुनिया है हमारी

दुनिया क्या है?
उम्र क़ैद
काटने के लिए
गुजर करने को
मिली जगह

उम्र कैद क्या है?
विंडो सिल पर
कप के
निशान के भीतर
जमी हुई धूल

चाय क्या है?
मैं और मेरे तुम,
मौन सा झरका,
बिछड़ने से
ठीक पहले की मिठास

प्रेम क्या है?
किसी अछूत द्वारा
मंदिर के भीतर
लगे घंटे का
पहला स्पर्श

स्पर्श क्या है?
वह पल जब
अलग हो रहा होता है 
माँ की गर्भनाल से
कोई शिशु

चाय के बहाने प्यार

आओ उफानते हैं
केतली भर प्यार आज
कविता दिवस के दिन
तुम मेरी बाहों में सोना
मैं सर रख लूँगी अपना
तुम्हारे सीने पर,
उबलते रहेंगे
हम दोनों के मन देर तक
पका लेंगे उसमें
प्यार, नोकझोंक,
तकरार की मीठी बातें
और छान लेंगे
एक दूसरे के मन में;
कड़वाहटें अलग करके

इंसान बनना है मुझे

माँ ने कृतज्ञ होना सिखाया

और यह भी सिखाया कि

नदी, वृक्ष, प्रकृति की तरह बनो

देना सीखो,

पशुओं की तरह बनो

अनुगामी रहो

अब उलझन में हूँ मैं

क्या इंसान नहीं बन सकती!

एक और सुझाव मिला

गीता का सार समझो,

ईश्वर कहता है

….

कदाचित कुछ नहीं कहता ईश्वर

अलावा इसके कि

कर्म प्रधान रहे

निर्णय स्वयं से हो और

संतुलन बना रहे

पीनट बटर

जाड़ों की दोस्त मूँगफली और

मूंगफली का दोस्त पीनट बटर

अगर करते हो ज्यादा चटर पटर

तो आजमा कर देखो एक बार


*पीनट बटर*

Health Matters


हाँ, साहस है मुझमें

क्यों बनूँ मैं प्रेम में अमृता
और ओढ़ लूँ 
उस प्रेम की उतरन
जो किसी ने किसी से किया...
आज कोई ले मेरी प्रेम रज
और माथे रखकर कहे
'मुझे स्नेह पगी अभिलाषा स्वीकार है'
हाँ, मुझमें साहस है 
प्रेम में अभिलाषा बनने का
...और उससे एक दिन नहीं मिलूँगी मैं
मिलती रहूँगी आँखें पनीली होने तक
जैसे साँझ से मिलती है रात.

मेरा मरना

समय का सिंगारदान
काला हो चला है
सूख रही है मेरे कलम की स्याही
लिखने की मेज पर पड़ा
कप का निशान मिटता ही नहीं
मां कहती है,
मैं ज्यादा चाय पीने से मरूंगी
कितनी भोली है मां,
आज तक शायद ही
कोई डेथ सर्टिफिकेट बना हो
जिस पर मृत्यु का कारण
चाय पीना अंकित है,
जब इतने दर्द में जी गयी
मैं तो ज़हर से भी न मरूं;
मैं जब भी मरूंगी
आत्मा की भूख से मरूंगी...

मेरी पहली पुस्तक

http://www.bookbazooka.com/book-store/badalte-rishto-ka-samikaran-by-roli-abhilasha.php