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एक रिश्ते की मौत

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एक रिश्ता 

जो तारीख से उपजा 
कैलेंडर पर बड़ा हुआ 
समय के साथ उम्रदराज़ हुआ.

एक रिश्ता 

जो मन की गहराइयों में उमगा 
सपनों में जवान हुआ 
उम्मीदों में पनपता रहा.

एक रिश्ता          

जिसमे थी समय की बंदिश 
दूरियों की परवाह 
और ही भविष्य की फिकर.

एक रिश्ता 

जो बस प्यार में बना था 
प्यार में पला था 
और प्यार के लिए था.

एक रिश्ता 

जिसमे छाँव थी तुम्हारी 
और धूप मेरी
सुख थे तुम्हारे 
दुःख मेरे 
वर्तमान था तुम्हारा 
और भविष्य मेरा


एक रिश्ता 

जिसमे जीना तो मुझे था 
तुम्हे तो बस टहलना था. 
.........................
मार दिया तुमने मुझे 
मेरे अंदर ही कहीं,
रिश्ता जब मरता है 
कांधा नहीं दिया जाता 
अर्थी नहीं निकलती है,
ही होता है राम-नाम सत्य 
वहां तो बस पिघलती है 
संवेदनाओं की चाशनी 
........................
मैं भोर के तारे सदृश 
आकाश में टक गयी 
ये देखने को 
...............
क्या होगा इस रिश्ते का पुनर्जन्म???

क्या संभव है?

आओ एक कहानी लिखें 
जिसमें स्त्री पुरुष हो 

और 
पुरुष … स्त्री,
क्या संभव है 
एक पुरुष के लिए 
स्त्री बनना?
आज सोचा 

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तो समझ आया 
स्त्री बहुत महान है,
वो हर साँचे में ढल जाती है,
हर किरदार में 
समा जाती है
और पुरुष 
वो तो स्त्री से जन्मा,
समा लेती है                  
स्त्री 
उसे अपने अंदर 
तन से,
मन से,
अर्पण से,
फिर भी 
पुरुष दम्भी 
और 
स्त्री कुंठित क्यों???



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वो सहमा-सहमा सा था मेरे भीतर 

और मैं इठलाई सी
यूँ लगे कि
सारे जहां की
रौनकें मुझपे छायी सी,
एक ऊर्जा सी थी
मेरे अंदर दिव्यता समाने की
मैं माँ बनने जा रही
ये तो सच ही था
पर मैं क्या खोने जा रही
ये अलग सा प्रश्न था अंदर,
जब मैं बहुत प्रेम में थी
मेरे अंदर का मैं
खो दिया था मैंने,
आज जब प्रेम का अंकुर 
प्रस्फुटित हुआ
मैं अपने मन का बच्चा
खोने जा रही
क्योंकि अब तुम
खसखस के बीज वाले आकार से
तिल के बीज वाले आकार में
रूपांतरित हो चुके हो,
तुम्हारे चेहरे के कुछ हिस्से उभरे होंगे
65 की रफ्तार से धड़कने वाले
दिल की नली भी,
तंत्रिका-नली भी तो बन गयी होगी;
पाचन-तंत्र और संवेदी-तन्त्र
भी बनने लगे होंगे,
उपास्थि आ गयी होगी,
बड़ा सा दिखता है सर अभी,
बहुत से सवाल आते हैं मन में,
सामान्य हो जाती हूँ 
जब इनका तसल्ली भरा हाथ
मेरी हथेली को गर्माहट देता है;
गूगल बताता है मुझे
तुम्हारी लम्बाई इंचों में
और वज़न ग्राम में,
पहले सेमेस्टर के आखिर में
तुम अपने पूरे वजूद में हो,
तुम्हारी मुट्ठी खुलती है, बन्द होती है
मगर गर्भ की दीवारों पर 
नाखूनों के निशान नहीं आते
मेरा समूचा अस्तित्व सिमट गया तुझमें
और तुम मेरे अहसास में ज़र्रा-ज़र्रा।

17 साल बाद 20 वर्षीय मिस इंडिया वर्ल्ड

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एक बार फिर भारत की ब्यूटी मुस्करायी
मानुषी मिस वर्ल्ड क्राउन में नज़र आयी
मैक्सिको, इंग्लैंड को भी पीछे छोड़
हरियाणा को विश्व पटल पर दिखाया
जब स्टेफनी ने
मिस छिल्लर को ताज पहनाया,
मेडिकल में दखल रखने वाली ने
17 सालों का सूखा मिटाया
आखिरी जवाब से
भारत की सभ्यता का मान बढ़ाया,
प्रियंका हमें आप पर नाज है
मानुषी ने इस मान को सम्मान दिलाया,
हम भारतवासी आपको देते हैं बधाई
भारत की सुंदरता हर कहीं मुस्करायी।

मेरी पहली पुस्तक

http://www.bookbazooka.com/book-store/badalte-rishto-ka-samikaran-by-roli-abhilasha.php