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एक रिश्ता
जो तारीख से उपजा
कैलेंडर पर बड़ा हुआ
समय के साथ उम्रदराज़ हुआ.
एक रिश्ता
जो मन की गहराइयों में उमगा
सपनों में जवान
हुआ
उम्मीदों में पनपता
रहा.
एक रिश्ता
जिसमे न थी समय की बंदिश
न दूरियों की परवाह
और न ही भविष्य की फिकर.
एक रिश्ता
जो बस प्यार
में बना था
प्यार में पला था
और प्यार के लिए था.
एक रिश्ता
जिसमे छाँव थी तुम्हारी
और धूप मेरी
सुख थे तुम्हारे
दुःख मेरे
वर्तमान था तुम्हारा
और भविष्य मेरा
एक रिश्ता
जिसमे जीना तो मुझे था
तुम्हे तो बस टहलना था.
.........................
मार दिया तुमने
मुझे
मेरे अंदर ही कहीं,
रिश्ता जब मरता
है
कांधा नहीं दिया
जाता
अर्थी नहीं निकलती
है,
न ही होता
है राम-नाम सत्य
वहां तो बस पिघलती है
संवेदनाओं की चाशनी
........................
मैं भोर के तारे सदृश
आकाश में टक गयी
ये देखने को
...............
क्या होगा इस रिश्ते का पुनर्जन्म???
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