सवालों से जवाबों से इन्हें किताबों से न आंको
उम्र और मन के मिलन को जुराबों में न झांको
उम्र और मन के मिलन को जुराबों में न झांको
चंचल हैं बहुत ये है ठिकाना इनका बहता पानी
हैं चट्टान से मगर ये, बदल दे नदियों की रवानी
उमंगों में जीते रहते और होते सपनों में बड़े ये
हर नज़र में हसीं मुस्कराहटों के दर पे खड़े से
एक उम्मीद बने सब, हैं दस्तक सुनहरे पल की
इनके ही हाथों सौंपी अब डोर अपने कल की
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें