बहुत देर से माँ मुझे जगा रही थी मैं था कि नींद छोड़ने को तैयार नहीं था। पूरे इक्कीस दिनों का टूअर था इस बार। कितने दिनों बाद आज मैं अपने घर में अपने बिस्तर पर सोया था। न उठने पर माँ ने सारी खिड़कियों से पर्दे हटा दिए। फिर भी न उठा तो चादर खींचा और मेरा मन किया कि मैं शिनचैन की तरह चादर में चिपक जाऊँ या फिर डोरेमॉन के किसी गैजेट से गायब हो जाऊँ। कुछ न कर सका मैं और माँ के आदेश पर नतमस्तक होकर उठना ही पड़ा।
'क्या हुआ आज फिर कोई आपकी सहेली आ रही होंगी अपनी बेटी के लिए मुझे पसंद करने।' कहता हुआ मैं बाथरूम में घुस गया। यही तो सबसे मुफीद जगह होती थी मेरे लिए सोचने की। यहीं पर तो मैं पूरे दिन की इबारत बना लिया करता था। कैसे गुजारना है पूरा दिन, क्या करना है, श्रद्धा बस स्टॉप पर मिलेगी या उसे घर से पिक करना है। श्रद्धा और मैं, हम दोनों एक ही मल्टी नेशनल कंपनी में चार सालों से काम कर रहे थे। बहुत अच्छी दोस्ती हो गयी थी शुरुआती दिनों में ही हमारी। धीरे-धीरे हम लोग पूरे ऑफिस का केंद्र-बिंदु बन गए थे। हम दोनों एक दूसरे में इस कदर खोए थे कि बाहर की दुनिया में क्या हो रहा अहसास ही नहीं था। ऑफिस के चलते ज़्यादा बात तो नहीं हो पाती थी पर लंच अक्सर साथ में ही होता था। उसे मेरे टिफ़िन का पूड़ी अचार बहुत पसंद था और मेरे लिए वो रोज ही कुछ अलग सा बनाकर लाती थी। आज भी कुछ नया होगा बस यही सोचकर मैं सारा काम छोड़कर लंच के लिए भागता था। वीक-एन्ड तो किसी न किसी बहाने से साथ में ही गुजारना है। इतने करीब थे हम दोनों कि कभी रिश्ते के बारे में सोचा ही नहीं। दोस्त थे बस इतना काफी था पर लोग ऐसा कब सोचते हैं। काफी दिनों तक ऐसा चलता रहा तो सभी ने बातें बनानी शुरू कर दीं। मैं बेफिक्र सा अपने ट्रैक पर चल रहा था। मेरी एक खास आदत थी कि मैं माँ से हर बात शेयर करता था और श्रद्धा के बारे में भी माँ उतना ही जानती थी जितना कि मैं।
'उफ़्फ़ सोचते-सोचते कब शावर ले लिया पता ही नहीं चला' अपने आप से बड़बड़ाता मैं बाथरूम से बाहर निकलकर कमरे में आ गया। चेंज कर ही रहा था तभी फोन बजा। फोन कान में लगाते ही श्रद्धा की भर्राई हुई आवाज कान में पड़ी। किसी अनहोनी की आशंका से मन दहल गया।
"विहान आज मैं ऑफिस नहीं आ रही। माँ की तबियतअचानक खराब हो गयी।"
मुझे कुछ समझ नहीं आया तो मैंने बोल दिया ठीक है तुम घर पर माँ का ध्यान रखो कुछ जरूरत हो तो बताना।
तैयार होकर ऑफिस जाने की मेरे अंदर जो उत्सुकता थी फोन आने के बाद तो जैसे गायब हो गयी थी। क्या करूँगा आज ऑफिस जाकर, कैसे कटेगा पूरा दिन और लंच तो उसके बगैर जैसे होगा ही नहीं। इसका एक सबसे बड़ा रीज़न यही था कि श्रद्धा बहुत रेयर केस में ही छुट्टी करती थी और उसके होते बाकी लोगों से मेरा कोई वास्ता नहीं रहता था। उसका न होना मीन्स एक उजाड़ सा नीरव वातावरण होना। मैं सोच ही रहा था तभी माँ कमरे में आ गयी, 'अरे क्या हुआ तुझे देर नहीं हो रही कब से तेरा नाश्ता टेबल पर लिए तेरा इंतज़ार कर रही हूं? जरा घड़ी देख क्या बज रहा है।' मैंने नज़र उठाकर देखा घड़ी सवा नौ बजा रही थी और ऑफिस पहुँचने में पूरा पैतालीस मिनट का वक़्त लगता था। मैं भागकर टेबल पर पहुँचा। एक बार तो मन आया कि नाश्ता छोड़ दूँ पर जानता था अगर छोड़कर गया तो माँ भी नहीं करेगी। जब से पापा नहीं रहे तब से घर का ये रूल था अगर मैं शहर में हूँ तो सुबह का नाश्ता और रात का खाना हम दोनों साथ में ही खाएंगे। हम-दोनों का एक-दूसरे के अलावा और कोई था भी नहीं।
'क्या हुआ कोई परेशानी है क्या?'
'नहीं माँ कुछ खास नहीं'
'ठीक है आम ही बता दे'
मैं माँ को श्रद्धा के फोन के बारे में बताते हुए बाहर निकल आया। घर से ऑफिस का रास्ता आज मुझे घंटों में लग रहा था। मैं अकेला और लम्बी छुट्टी के बाद ऑफिस पहुँचा था। ऐसा लग रहा था जैसे हर नज़र मुझे ही घूर रही थी। मैं लगातार सहज होने का प्रयत्न कर रहा था पर लोगों की नजरें और मेरा एकाकीपन मुझे असहज करा रहा था। किसी तरह काम का वक़्त तो निकल गया पर लंच वो भी श्रद्धा के बग़ैर सवाल ही नहीं उठता था। लंच का डिब्बा वहीं छोड़कर मैं कैंटीन में बैठ गया। मेरे हाथों में श्रद्धा की गिफ्ट की हुई एक किताब थी। पढ़ते-पढ़ते टाइम कब ओवर होने को था पता ही नहीं चला। चाय लेकर मैं बाहर निकल ही रहा था कि किसी ने पीछे से कंधा थपथपाया। पीछे मुड़कर देखा तो सोमेश मुस्करा रहा था।
'और बता कैसा रहा टूर?'
'ऑफिशियल टूर जितना अच्छा हो सकता था बस उतना ही रहा।'
'क्यों तेरे साथ तो माल गयी थी?' सोमेश के मुँह से इतना गंदा शब्द सुनकर मैं चीख सा उठा था पर आवाज मेरे अंदर ही कहीं घुट गयी थी। मैंने अपने दोनों हाथ भींचकर जीन्स की पॉकेट में डाल लिए थे इस डर से कि कहीं सोमेश की गर्दन तक न पहुँच जाएं। इतनी मासूम सी श्रद्धा के लिए कोई ऐसा सोच भी कैसे सकता है। उससे मुँह लगे बिना ही मैं अपने केबिन में आ गया। फाइलों में सिर खपाता या उठाकर अपने सिर पर ही रख लेता काम में मन लगने वाला नहीं था। आज पहली बार किसी ने मुझसे ये बोला इसका मतलब तो यही हुआ न कि लोग हमारे बारे में ऐसा ही सोचते होंगे। कुछ देर तो मैं बैठा रहा फिर छुट्टी लेकर ऑफिस से निकल आया।
गाड़ी निकाली और चल पड़ा। ये डिसाइड तो नहीं किया था कि कहाँ जाना है पर गाड़ी अपने रास्ते चलती रही। पीछे वही सड़क, इमारतें और निशान छूटते जा रहे थे जो श्रद्धा को बहुत पसंद थे। किसी भी वक़्त वो चुप नहीं रहती थी। उसका घर मुझसे पहले ही पड़ जाता था। बस स्टॉप वाले मोड़ पर मैं उसको उतार दिया करता था। वहाँ से उसका घर सामने ही दिखता था। फिर मैं अपने घर चला जाया करता था। आज भी वो बस स्टॉप आ चुका था और मेरी गाड़ी अनायास ही श्रद्धा के घर की तरफ मुड़ गयी। गाड़ी नीचे पार्क करके ऊपर गया। श्रद्धा सेकेंड फ्लोर पर रहती थी। लिफ्ट तक न जाकर मैं सीढ़ियों से गया। डोरबेल बजायी, 20 सेकण्ड्स में ही दरवाजा खुला गया। सामने मुरझाई हुई सी श्रद्धा खड़ी थी। बिखरे हुए से बाल, अस्त-व्यस्त से कपड़े लग रहा था जैसे सुबह से कुछ भी न खाया हो। मुझे अंदर बुलाकर डोर बंद कर दिया। सामने पड़े सोफे पर मुझे बैठने का इशारा कर खुद भी बैठ गयी। एक तो आज पहली बार श्रद्धा के घर आया था वो भी इस कंडीशन में, मैं बिल्कुल भी सहज नहीं हो पा रहा था। श्रद्धा मुझे पढ़ना बखूबी जानती थी वो मेरी स्थिति भांप गयी और मुझे सहज करते हुए बोली, 'चलो मैं तुम्हें अपनी मम्मी से मिलवाती हूँ।'
मैं उसके पीछे हो लिया। बेडरूम पहुँचा तो एक दुबली-पतली अपनी उम्र से बहुत बड़ी सी दिखने वाली महिला से सामना हुआ। मैंने झुककर अभिवादन किया, प्रति उत्तर में वो मुस्करा भर दीं। फिर श्रद्धा ने बताया कि जब वो बाहर थी तभी मम्मी की तबियत अचानक खराब हो गयी थी। लीना आंटी ने डॉक्टर को दिखाया। डॉक्टर ने एंजियोग्राफ़ी के लिए बोला था पर मम्मी ने लीना आंटी को मुझे बताने को मना कर दिया था। लास्ट वीक से अब तक मम्मी बेड पर हैं, ये तो मुझे वापिस आकर पता चला। इतना कहते-कहते श्रद्धा की आँखे नम हो गयीं। अब तक तो मैं उसे मस्त, बिंदास और बेफिक्र लड़की समझता था। आज तो बिल्कुल उलट लग रही थी। मम्मी ने श्रद्धा को चाय बनाने को बोला। मैंने बहुत मना किया फिर भी वो ले आयी। एक ही चाय देखकर मैं पूछ बैठा, 'आंटी की चाय?'
'मम्मी चाय नहीं पीतीं'
'तुम तो पीती हो न, मुझसे अकेले नहीं पी जाएगी।'
'ठीक है मैं अभी बना लूँगी'
'नहीं इसमें ज़्यादा है। मैंने तो अभी लंच किया है।' मैंने ज़बरदस्ती दूसरे कप में आधी चाय श्रद्धा के लिए डाल दी क्योंकि मुझे पता था उसने टेंशन में कुछ नहीं खाया है। दिन भर के बाद श्रद्धा के साथ चाय पीकर बहुत अच्छा सा फील हुआ। आंटी से अनुमति लेकर मैं चलने को हुआ तो श्रद्धा भी खड़ी हो गयी और दरवाजे तक छोड़ने आयी। मैंने दरवाजे के बाहर पैर निकाला फिर पीछे मुड़ गया ये जानने के लिए कि जो कुछ मुझे दिख रहा है बात बस इतनी सी ही है या कोई और परेशानी भी है। अगर कुछ है तो एक फ्रेंड होने के नाते मुझसे शेयर करे। मेरा इतना बोलना था कि वो सुबक पड़ी और इसके आगे की जो कहानी सुनाई मुझे तो सहसा यकीन ही नहीं हुआ।
श्रध्दा का इस दुनिया में कोई नहीं था। उसके जन्म के बाद ही पापा ने माँ को डिवोर्स दे दिया था। श्रद्धा की कस्टडी उसकी मदर को मिली। जब वो 12 साल की थी माँ चल बसीं फिर उसकी ताई माँ ने उसे पाला। आज ताई माँ उर्फ बड़ी मम्मी की बीमारी ने उसे तोड़ दिया। बहुत संघर्ष भरा सफर रहा उसका और आज तक कभी मैंने उसके चेहरे पर शिकन तक न देखी। श्रद्धा ने मेरे कंधे पर सिर टिका लिया था। मैं उसे तसल्ली दे रहा था कि मेरे होते कभी खुद को अकेला न समझे। अगले दिन आने का वादा कर मैं सीढ़ियों पर आ गया था। नीचे पहुँचने ही वाला था कि श्रद्धा की आवाज सुनाई दी। पीछे मुड़कर देखा तो मेरा लंच बॉक्स लिए थी जो शायद मेज पर रह गया था।
'ये क्या तुमने लंच नहीं किया?' वही पुराना शिकायत का लहजा क्योंकि उसके होते मुझे अपनी दिनचर्या बेहद तरतीब ढंग से सजानी पड़ती थी।
मुझसे कुछ बोलते नहीं बन पड़ा। उसने बहुत प्यार से मेरी कलाई थाम रखी थी और मेरी आँखों में आँखे डालकर जैसे ढेर सारी नसीहतें दे रही हो। इतने दिनों के रिश्ते में आज पहली बार मैं उसकी आँखों में प्रेम पढ़ रहा था। भावनात्मक लगाव था ये तो जानता था पर क्या प्रेम कहते हैं इसे ये समझना बाकी था अभी। वो ऊपर चली गयी और मैं घर आ गया।
रोज की तरह शावर लिया और म्यूजिक सिस्टम ऑन कर कमरे में लेट गया। रात के खाने पर माँ ने लंच वाली बात पर जमकर डांटा। बातों ही बातों में श्रद्धा की बात हुई तो मैंने उसके घर जाने वाली बात बताई पर आज पहली बार माँ से जाने क्यों वो सब बातें नहीं बतायीं। अब तक मैं श्रद्धा को लेकर बहुत सहज था पर आज अचानक ऐसा क्यों हो गया? शायद इसी को प्यार कहते हैं। क्या मैं श्रद्धा से प्यार करता हूँ और वो भी..? इन्हीं उलझनों में जाने कब नींद आ गयी। सुबह अपने दैनिक क्रिया-कलापों से निवृत्त होकर नाश्ते की मेज पर था। माँ मेड से जाने किस बात पर बहस कर रही थी बस इतना ही सुन पाया कि आजकल की लड़कियों का तो धंधा हो गया है लड़के फंसाना और इस काम में अब तो माँ-बाप तक साथ देने लगे हैं। मुझे अजीब सा लगा कहीं श्रद्धा को लेकर कुछ...पर ऐसा कैसे हो सकता है।
मैं घर से श्रद्धा और आंटी को पिक करके हॉस्पिटल गया। एंजियोग्राफी करवाने में शाम हो गयी। मैं घर आ गया। अगले दिन सुबह ही डिस्चार्ज कराकर घर ड्राप किया। इधर दो-तीन दिन में हालात सामान्य हो गए थे पर मेरे दिल का अलार्म बुरा संकेत दे चुका था। श्रद्धा भी प्यार का इकरार कर चुकी थी। उसने तो यहाँ तक कह दिया कि वो बहुत पहले से ही मुझे प्रेम करती थी। अब मेरी ज़िंदगी का मकसद श्रद्धा को खुश देखना भर रह गया था पर माँ की परमिशन पर ही डिपेंड था। माँ से कुछ भी कहने की हिम्मत नहीं जुटा पा रहा था।
उस दिन शाम जब घर पहुंचा नीचे सोसाइटी के लोग इकट्ठे थे। पूँछने पर पता चला कि शकील की माँ लोगों से शकील पर दबाव बनाने की बात कह रही थी। लोगों के घरों में गाड़ी साफ करके जो पैसे मिलते हैं वो अपनी महबूबा पर उड़ा देता है अपने बूढ़े माँ-बाप की बिल्कुल भी फ़िकर नहीं।
माँ की बात पूरी सोसाइटी मानती थी तो उन्हें ये जिम्मा दिया गया कि शकील को समझाएं। माँ ने शकील को डांटने से पहले एक बार नासिरा और उसकी माँ से मिलने की सोची। मैं और माँ नासिरा के घर पहुँचे। पूँछने पर पता चला नासिरा अपनी अम्मी के साथ एक चाल में रहती है। उसके अब्बू का इंतकाल हुए कई बरस बीत गए। नासिरा घर की बड़ी है। दो छोटे भाई-बहन का जिम्मा उसी पर है। अम्मी को दो महीने पहले ट्यूबरक्लोसिस हो गया। दवाइयों का खर्च और खान पान बेचारी नासिरा अकेले नहीं कर पा रही थी। शकील अपनी कमाई का एक हिस्सा नासिरा से शेयर करता था। शकील का बड़ा दिल देखकर माँ की आँखे बार आयीं। बाहर तक आते-आते माँ ने नासिरा की अम्मी को शादी तक का सुझाव दे डाला।
माँ का जस्टिस देखकर मेरा मन हल्का हो चला था। अब श्रध्दा की मांग में खुशी का रंग सजाने से मुझे कोई नहीं रोक सकता था।
To explore the words.... I am a simple but unique imaginative person cum personality. Love to talk to others who need me. No synonym for life and love are available in my dictionary. I try to feel the breath of nature at the very own moment when alive. Death is unavailable in this universe because we grave only body not our soul. It is eternal. abhi.abhilasha86@gmail.com... You may reach to me anytime.
प्रेम में हिसाब कैसा
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