अवसान तक प्रेम!

मैं बचाए रखना चाहती हूं प्रेम
ख़त्म होने तक भी
यहां तक कि प्रेम के अवशेष
जब कुछ भी न बचे दुनिया में
तब तुम्हें वो पोषित करता रहे
चिरकाल तक
और फ़िर तुमसे ही प्रारम्भ हो
एक नए युग का
जिसकी रगों में बहता हो
मेरा पोषित किया हुआ प्रेम.

2 टिप्‍पणियां:

Manjit Thakur ने कहा…

आपकी कई कविताएं पढ़ीं. टिप्पणी फिलहाल एक पर ही कर रहा हूं. आप सानदार लिखती हैं. बस. बाकी और पढ़कर टीप देंगे. सादर

Roli Abhilasha ने कहा…

आज आपकी प्रतिक्रिया देखी...सस्नेह आभार 🙏 आपकी प्रतिक्रिया की प्रतीक्षा रहेगी.

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