सृष्टि, तुम्हारी हथेली में

 ब्रह्मा का वास है

तुम्हारी कलाई में

मुट्ठी में शिव

और उँगलियों में चतुरानन

चारों दिशाओं में घूमती कलाई

बस एक भी शब्द पर

ठहर भर जाए

तोड़ देते हो

अपने ही सारे आयाम

सृजन के.

प्रिय है कलाई ही इतनी

कि मुट्ठी और उँगलियाँ

वंचित हैं स्नेह से अब तक.

8 टिप्‍पणियां:

आलोक सिन्हा ने कहा…

सुंदर

Pammi singh'tripti' ने कहा…


आपकी लिखी रचना ब्लॉग "पांच लिंकों का आनन्द" में बुधवार 18 अगस्त 2021 को साझा की गयी है.............. पाँच लिंकों का आनन्द पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!

Swapan priya ने कहा…

Bahut Sundar👏👏
Mai aapki rachnaye bde mann se pdhti hun..💞💞

Roli Abhilasha ने कहा…

आभार आपका!

Roli Abhilasha ने कहा…

बहुत ही आभार एवं स्नेह!

Roli Abhilasha ने कहा…

बहुत स्नेह आभार आपका!

संगीता स्वरुप ( गीत ) ने कहा…

आपकी ये गूढ़ रचना मुझे समझ न आई । किसी शब्द पर अटक कर सृजन के सारे आयाम कैसे तोड़ दिए जाते हैं ? मुट्ठी और उँगलियाँ क्यों वंचित हैं स्नेह से और किसके स्नेह से .... कुछ समझ नहीं आ रहा ।

Roli Abhilasha ने कहा…

पूरी कविता में कलाई की चर्चा हुई तो मुट्ठी और उँगलियाँ वंचित हुईं.
एक ही शब्द से सृजन असीमित और परिपक्व हो जाता है तो दूसरी ओर कलम चलती ही नहीं.
आभार मन से जुड़ने के लिए.

मेरी पहली पुस्तक

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