'मैं तुम संग प्रेम में हूँ'
यह कोई प्रणय निवेदन नहीं
मेरे मन का माधुर्य भर है
शकरपारे से पगी अपनी दीद
रख देना चाहती हूँ
मैं तुम्हारी हथेली पर
लज्जारुण हो तुम लगा लेना
हथेली अपने सीने से
संध्या विनय के क्षणों में
नीड़ चहकने तक
तुम आकाश सुमन हो मेरा
सौम्य नभ कमल
मेरे विनयी साथी
मेरी तंद्रा का आकर्षण
कल्पनाओं की नीलगिरि से
आती हुई परिचित भाषा
मुझे नहीं पता मैं कौन
और तुम मेरे मन का मौन
1 टिप्पणी:
बहुत सुंदर अभिव्यक्ति
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