सभा

 


जंगलों में अक्सर चलती हैं सभायें

हिसाब होता है हर रोज संपदा का

कोई सज़ा मुकर्रर नहीं होती

मग़र लाली पर

बस ले जाती है कभी-कभार वह

मात्र इतनी लकड़ियाँ

जितनी आग से

बुझायी जा सके जठराग्नि

इन लकड़ियों के बदले

वह रक्षा भी तो करती है

जंगल, जीवन और प्रकृति की


इस पेड़ के नीचे आज की यह

अंतिम सभा है

हत्या का इस पर स्टिकर लगा है

सुंदर से गछ को मिटाकर

किया जायेगा सौंदर्यीकरण

दहन कर इसकी जड़ों को

करेंगे किसी मल्टीप्लेक्स का अनावरण


@main_abhilasha 


चित्र सुशोभित जी की स्टोरी से चुराया था.


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मेरी पहली पुस्तक

http://www.bookbazooka.com/book-store/badalte-rishto-ka-samikaran-by-roli-abhilasha.php