To explore the words.... I am a simple but unique imaginative person cum personality. Love to talk to others who need me. No synonym for life and love are available in my dictionary. I try to feel the breath of nature at the very own moment when alive. Death is unavailable in this universe because we grave only body not our soul. It is eternal. abhi.abhilasha86@gmail.com... You may reach to me anytime.
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जाने क्यों!
जब सार्थक हो मौन
तो माप आता है
आकाश गंगा से लेकर
पृथ्वी की बूँदों का घनत्व,
समझ आता है
दिव्य भाव-भंगिमाएँ,
तुला पर रख गुज़रता है
अकाट्य तर्क
....
अगर असफल होता है
तो बस
प्रेम का उतार चढ़ाव पढ़ने में.
जाने क्यों नहीं पढ़ पाता
प्रेमिका का निःछल मन!
आओ शिव उद्धार करो
जब प्रेममयी धरा छलकी
तब अम्बर गहराया नभ पे
नदिया लहर निचोड़ चली
तो सागर भी रोया छल से
ज्यों वायु किलोरे मार रही
त्यों रुप प्रसून बिसूर रहा
यूँ प्रेमी हिया में आस जगी
के प्रेम का आविर्भाव हुआ
फिर प्रेम चला मुँह मोड़ एक दिन
रुठ गये खुशियों के सब पल-छिन
प्रेमी मन का प्रकट चीत्कार हुआ
कलुषित वेदना का यलगार हुआ
यूँ अगन जली हिमशिला गली
आहत हठ, भागीरथ फिसली
इक गंगा प्रलय की ओर चली
हाहाकार मचाने को, निकली
है आस शिव रौद्र रुप गर्जन वाली
किस तरह जटा में प्रलय सम्हाली
करबद्ध जप रहे हैं, सब नाम प्रभु
दिखला दो छवि अब वही निराली
विश्वास का तारा
अँधेरे जब हँसते हैं
तो बहुत ज़ोर ज़ोर से हँसते हैं
बिल्कुल तुम से
मैं उस हँसी को महसूसने के लिए
पूरा दिन एक पैर पर चलकर
चलते-चलते निकाल देती हूँ
फिर भी उजालों से
कोई शिकायत नहीं करती कभी
और तुम आते भी हो तो
मौन के रेशमी सूत में लिपटकर...
एक हठ से धुला रहता है तुम्हारा चेहरा.
तुम्हारा मौन टूटना कहीं मुश्किल है
आकाश में विश्वास का तारा टूटने से.
कान्हा की कलाएँ और देह त्याग
प्रतिपदा में चित्तवृत्ति
अंगदा प्रवृत्ति हो
पूर्णिमा का पूर्णामृत
देह तेरी वृत्ति हो.
प्रभास क्षेत्र सोमनाथ
देह छोड़ चंचला
वाणी मादक, गन्ध मादक
द्वैत भाव हर गया
:ऊपर की चार लाइन में कान्हा की चार कलाएँ हैं जिन पर राधा मर मिटी थी. नीचे वर्णित है कान्हा ने सोमनाथ के प्रभास क्षेत्र में देह त्याग किया था. इससे पहले उन्होंने द्वैत भाव पर एकाकार की भावना संचारित की थी.
ऐ मेरी ख़्वाहिश!
ऐ मेरी ख़्वाहिश!
आ पहना दूँ तेरे पाँवों में झाँझर
तो जान लिया करुँगी तुझे आते-जाते
तू जाना तो उन तक जाना
और आना भी तो बस उनकी होकर.
ऐ मेरी ख़्वाहिश!
आ तेरी दीद में दूँ सिंहपर्णी की झलक,
वो बदल देते हैं मिजाज़ अपना
मौसम की तरह
तू रख आना उनकी आँखों पर बोसा.
ऐ मेरी ख़्वाहिश!
आ तुझे लिबास दूँ सरहद की वर्दी
जो क़ुबूल हो इश्क़ में मेरी शहादत
तो तू बदल आना उनकी भी
सुस्त रहने की आदत.
ऐ मेरी ख़्वाहिश!
जो मैं टूट जाऊँ जीते-जीते
तू उनकी ऐसे हो जाना
जैसे मेरी थी ही नहीं कभी
बाँसुरी बन जाना उनके होठों की
उनको रिझाना, के बाक़ी न रहे उनके पास
दिल टूटने का कोई बहाना;
साये से जुदा मेरी मौत कहाँ मुमकिन
मैं आऊँगी फिर से
एक और ज़िन्दगी के लिए
लेकर आऊँगी सुकून की झप्पी
तब मुझे दिलाना उनकी चिरायु झलक.
बस एक उनकी ही तो ज़िद है मुझको
न उनके जैसा कोई होगा
न उनसे अलग कोई चलेगा
गहन दुःख की स्मृति
जब कभी गुज़रोगी मेरी गली से
तो मेरी पीड़ा तुम्हें किसी टूटे प्रेमी का
संक्षिप्त एकालाप लगेगी
पूरी पीड़ा को शब्द देना कहाँ सम्भव?
मैंने तो बस इंसान होने की तमीज़ को जिया है
अपनी कविताओं के ज़रिए...
मन के गहन दुःख को जो व्यक्त कर सकें
वो सृजन करने का मुझमें साहस कहाँ?
डूबते सूरज की छाया में मैं मरघट लिखूँगा
तुम अपने स्मित की अंतिम स्मृति पढ़कर चली जाना.
बोलो न!
तुम्हारे पाँवों पर सर रखते ही
हमारा दर्द भी उम्मीद से हो जाता है
जाने कितनी कुँवारी इच्छाएँ
परिणय का सुख पा लेती हैं
फिर हर बार तुम अपने परिचय में
क्यों लगते हो हमें अधूरे, अबूझे
और बुझे बुझे से?
तुम्हारा परिचय वो इत्र क्यों नहीं
जो स्वयं महकता है
किसी के स्पर्श का आदी नहीं?
बस एक बार नहला दो
अपने चेहरे पर पसरी अनन्त मुस्कान से
चिर काल तक रहना ऐसे ही फिर!
प्रभु शरण
कि बढ़ चले पुकार पर
त्रिशूल रख ललार पर
जो मृत्यु भी हो राह में
कर वरण तू कर वरण
हो पार्थ सबकी मुक्ति में
रख हौसले को शक्ति में
जो शत्रु को पछाड़ दें
वो तेरे चरण, तेरे चरण
जब तेरे आगे सर झुकें
हाथ कभी रिक्त मिलें
बाधाओं से टकरा के
बन करण तू बन करण
पछाड़ दे तू हर दहाड़
ऐसी हो तेरी हुँकार
चीर किसी द्रोपदी का
ना हो हरण, ना हो हरण
न हो जटिलता का अंत
बस मौन रहे दिग-दिगन्त
हो पथ का भार तेरे सर
प्रभु शरण ले प्रभु शरण
मास्क वाला प्रेम
चलो न
खुले में प्रेम करते हैं
सूरज की रोशनी
जहाँ ठहर जाए ऊपर ही,
जैसे प्रेम के देवता ने
अपने पंख फैलाकर
हमें दे दी हो
हमारे हिस्से की छाँव;
ऐसा करते हैं न
रख देते हैं एक मास्क
उजास के चेहरे पर
और जी लेते हैं प्रेम भर तम.
शब्दों की छुअन और मैं
प्रेम और ॐ
प्रेयसी
पर बिना पहले मिलन
प्रेम सम्भव ही कहाँ,
सुलझाते हुए अपने बालों की लटें
उसे प्रतीक्षा होती है उस फूल की
जो उसका राजकुमार लाएगा
जूड़े में लगाने को.
चढ़ाते हुए चूल्हे पर चाय
वो मिठास ढूँढती है
कि उन हाथों में जाने से पहले प्याला
मद्धम आँच के ज्वार भाटे सहेजेगा,
उद्विग्न हो उठता है उसका मन
प्रेयसी बनने को.
कोई भी शब्द पढ़ने से पहले
समझना चाहती है
इस ब्रह्मांड की सभी मौन लिपियाँ
कि उनके पार जा सके
और जान सके प्रेम के अनकहे रहस्य
प्रेयसी बनकर.
इच्छाओं के समंदर को जीते हुए
वो बनकर रह गई है प्रेम सी
अब उसे अपना मन रिक्त करना है
अपना यायावर प्रेम
लुटाना है उस प्रेमी पर
जिसके साथ पहली ही मुलाक़ात
अभी लंबित है.
अबूझी कहानी
कोई राधा तुम्हारे मन में भी बसती तो होगी
मैंने पहला शब्द ब्रह्मांड बोला था
और तुमने असुर
तुम अविश्वास के अनुच्छेद में टहलते रहे
और मैं विश्वास की सूची में
तुमने पलाशों का झड़ना देखा
और मैंने गुलमोहर का खिलना
मेरे लिए बहुत आसान है कहना
कि तुम सही नहीं हो
फ़िर भी पूरे यक़ीन से कहती हूँ मैं
कि तुम ही सही हो...
सहरा में दोआब की कोशिश मेरी थी
ग़लत थी मैं
मैंने चाहा था उस आब से बरसती बूंदे
तुम पर गुलाबी पड़ें
इसका आकलन तुम्हारा मन
मेरी काली सोच कर गया;
मेरी आँखों ने विश्वास को
तुम्हारा सहोदर देखा था
तुम्हें लगा मैं तुमसे रिश्ते की आस में हूँ
स्वप्न में भी तुमसे कोई प्रणय नहीं किया मैंने
कोई राधा बसती होगी तुम्हारे भी मन में
पूछना उससे क्या प्रेम बस इतना ही होता?
कोई एक नाम तो और भी होगा प्रेम का
इस ब्रह्मांड में
मैं चल कर जाना चाहती हूँ उस तक
मृत्यु से पहले ब्लैक होल में समाना भी गवारा होगा
मुझे मंजूर होंगी वो यातनाएँ
जो जीवित अवस्था में भी सलीब पर टाँग दे मुझे
अगर तुम कहते हो सूरजमुखी तुम्हें देखकर नहीं खिलता!
एक प्रार्थना देवदूत से
तो क्या तुम लौटा कर ला सकोगे वो दिन
जो अपना अस्तित्व खो चुके हैं.
कभी सोचा, कैसे सोती हूँ मैं उन रातों को
जो तुमने अपनी स्याही से सींची थीं
...और भयावह हो जाता है
मेरी आँखों से भीगकर सन्नाटे का शोर...
दर्द भी इन दिनों अपनी फ़ाक़ाकशी में है
कुछ नहीं तो संघर्ष से भरे दुर्दिन में
गरुण पुराण के कुछ अंश मेरे कान में डाल जाओ
मेरी जिह्वा पर अधीरता का मंत्र है
अंतिम प्रहर में आँखें खोलना चाहती हूँ मैं, कि
तुम्हारा अटूट मौन जीतते हुए देखूँ.
मेरी शोक सभा में कोई मर्सिया नहीं पढ़ना
तुम पढ़ना प्रेम कविताएँ, बांटना अपनी रिक्तियां
और उस लोक में ले जाऊँगी मैं
तुम्हारे लिए संचित मोह, अपने गर्भ में छुपाकर
कहीं तो इसे जायज़ हक़ मिलेगा...
मेरी पहली पुस्तक
http://www.bookbazooka.com/book-store/badalte-rishto-ka-samikaran-by-roli-abhilasha.php
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स्वयं के अन्तस् रावण अटल घात लगाए स्वयं की हर पल मुझको दर्पण बन, जो मिला वही विजित है मेरा स्वर कल नयन में राम तो पग में शूल हैं हर शबरी के ...
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