To explore the words.... I am a simple but unique imaginative person cum personality. Love to talk to others who need me. No synonym for life and love are available in my dictionary. I try to feel the breath of nature at the very own moment when alive. Death is unavailable in this universe because we grave only body not our soul. It is eternal. abhi.abhilasha86@gmail.com... You may reach to me anytime.
लांछन
"सन्नो..." ननद की आवाज सुनते ही सन्नो ने पलटकर देखा। खीझ भरा गुस्सा देखकर सहम गयी। वो कुछ बोल पाती इससे पहले ही उसकी बात काट दी गयी, "देख अब तक बहुत सह लिया तुझे। अब तो नरेश भी नहीं रहा, क्या करेंगे हम लोग तेरा। वैसे भी हमारे घर में छोटे-छोटे बच्चे हैं कहीं इन्हें कुछ हो गया तो। अब तेरा यहाँ से जाना ही ठीक है।"
सन्नो को कुछ बोलने का मौका नहीं दिया गया। ननद और जेठानी उसे आंगन से खीचते हुए बाहर अहाते तक ले गयीं, लगभग धकेलते हुए दरवाजा अंदर से बंद कर लिया। सन्नो ने सास की तरफ़ ज्यों ही पलट कर देखा उसने ऐसे मुँह फेर लिया जैसे पहचानती ही नहीं।
अब वो अहाते के दरवाजे पर गुमसुम उस दहलीज को निहार रही थी जहाँ 2 साल पहले ब्याह कर लायी गयी थी। नरेश दिल्ली के एक कारखाने में काम करता था और वहीं एक चॉल में रहता था। उसे अपने पति के चाल-चलन पर शुरू से ही संदेह था पर कभी घर की इज्जत और कभी उसके औरत होने की मजबूरी उसे चुप रखती थी। माँ-बाप बूढ़े हो चले थे, भाइयों ने कोई सुध ही नहीं ली।
पिछले महीने नरेश की तबियत अचानक बिगड़ गयी। दिल्ली से आने पर पता चला कि वो एड्स के शिकंजे में है। उसके पैरों तले जमीन खिसक गयी। तब सास, जेठानी और ननद ने पैरों पर सर रख दिया था कि घर की इज्जत का सवाल है बात बाहर न जाये। सन्नो ने पूरे एक महीने तक पति की जी-जान से सेवा की, अंततः वो चल बसा। अंतिम समय में सन्नो को उसकी आँखों में पश्चात्ताप दिखा था पर तब जब जीवन में कोई झनकार नहीं बची थी।
आज सन्नो की सिसकी नहीं रुक रही कि कौन उसे निर्दोष मानेगा। नरेश के जीते जी वो चुप रही अब किससे कहेगी कि वो बदचलन नहीं है।
'हे प्रभु, अगर कलयुग में धरती नहीं फट सकती समाने को तो सीता मइया जैसा लांछन क्यों लगवाते हो???' सन्नो की आत्मा चीख रही थी।
एक मीरा और दूसरी भी मीरा
एक रिश्ते की मौत
क्या संभव है?
फीलिंग्स का गूगल सर्च
17 साल बाद 20 वर्षीय मिस इंडिया वर्ल्ड
मैं अपनी फ़ेवरिट हूँ.
मेरे मैं से मेरा रूबरू होना
वो हर शब्द
भावनाओं की झीनी चादर से ढ़के
मैं पढ़ती रही जो तुमने कहे
कभी खुलकर
तुमने अहसास की बारिश कर दी
मेरे दिल के मोती कभी
अपने नेह की चाशनी में पगे,
तुम तो तुम हो
ये जानती थी मैं हरदम
मैं क्या हूँ खुद में
वो लम्हे जादू के तुमने रचे,
शब्दों की दहलीज पर
कदमों की हलचल कर दी,
सरसों उगाने को
अपनी हथेली रख दी,
मुझमें कविता है मेरी
सीप में मोती की मानिंद,
समंदर की सहर पर तुमने
शाम की इबारत रच दी,
तुम हो
तो गुमां होता है खुद पर
तुम्हें खुद में
सोचती रह जाती हूँ अक्सर
तुम्हारे इन शब्दों में उलझ गयी हूँ
कि मैं अपनी फ़ेवरिट हो गयी हूँ।
मेरी पहली पुस्तक
http://www.bookbazooka.com/book-store/badalte-rishto-ka-samikaran-by-roli-abhilasha.php
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प्रेयसी बनना चाहती है वो पर बिना पहले मिलन प्रेम सम्भव ही कहाँ, सुलझाते हुए अपने बालों की लटें उसे प्रतीक्षा होती है उस फूल की जो उसका...