GOOGLE IMAGE
बहुत दिमाग घुमाया
सर चकराया
गुस्सा भी आया,
क्या मेरी बातें हैं
जलेबी की तरह गोल-गोल
समझ नहीं आते लोगों को
मेरे सीधे बोल
जो मेरे संग नहीं बिताते
दो मिनट अनमोल,
2017 तो गया बीत
कहाँ बदली उनकी रीत
मैं हारी नहीं तो क्या
कहाँ हुई जीत,
लिखने से पहले
अब पूछती हूँ खुद से
कि मेरी बेजान लेखनी
अब कौन पढ़ेगा
फिर दिमाग कैसे
कोई सृजन गढ़ेगा,
इस व्यंग्य को पढ़ने वालों
मेरे प्रिय मित्रों
मेरा सवाल सुलझा दो
कहीं मिलता हो गर
दस हजार का आँकड़ा
मुझे भी दिला दो,
कमेंट बॉक्स में उत्तर लिखे बिना मत जाना
पहली बार मंगल ग्रह पर पार्टी रखी है
आप सब जरूर आना,
2018 दस्तक पर है
मुस्कराते हुए बुलाना
वर्ष का हर दिन मंगलमय हो
बस गुनगुनाते हुए बिताना।
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें