शहादत!


'चांद आज साठ बरस का हो गया' इतना कहकर पापा ने ईंट की दीवार पर पीठ टिकाते हुए मेरी आंखों में कुछ पढ़ने की कोशिश की...
'लेकिन मेरा चांद तो अभी एक साल का भी नहीं हुआ है' कहते हुए मैं पापा से लिपट गई.
मेरी आंखों से रिस रहे आंसू बीते समय को जी रहे हैं. रोज शाम हम घर की छत पर होते हैं तीन महीने से हर रोज पापा छत पर एक तारे को अपने बेटे का नाम देते हैं और मैं अपनी मां का.
तिरंगे से लिपट कर एक लाश अाई थी और जाते वक़्त दो अर्थी उठी थीं. जिसे शहादत कहते हो आप सब वो वीरानी बनकर चीखती है. थर्राती है सन्नाटों में.

15 टिप्‍पणियां:

डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक' ने कहा…

बहुत मार्मिक।
शहीदों को नमन।

रोली अभिलाषा ने कहा…

बहुत आभार माननीय!

रोली अभिलाषा ने कहा…

बहुत आभार माननीया 🙏

Sawai Singh Rajpurohit ने कहा…

Jai hind
Naman

Rakesh ने कहा…

जय हिन्द जय हिन्द की सेना

Marmagya - know the inner self ने कहा…

जय हिन्द ! मार्मिक रचना ! दिल को छू गयी ! --ब्रजेन्द्र नाथ

दिगम्बर नासवा ने कहा…

मार्मिक ... स्तबद्ध हूँ पढने के बाद ...
नमन है मेरा ...

Swarajya karun ने कहा…

हृदयस्पर्शी पंक्तियां पढ़कर मन व्यथित हो उठा। भावपूर्ण प्रस्तुति ।

रोली अभिलाषा ने कहा…

बहुत आभार आपका मान्यवर 🙏

रोली अभिलाषा ने कहा…

आभार मान्यवर 🙏

रोली अभिलाषा ने कहा…

बहुत आभार 🙏

रोली अभिलाषा ने कहा…

जय हिंद!

रोली अभिलाषा ने कहा…

जय हिंद!

Anuradha chauhan ने कहा…

बेहद मर्मस्पर्शी सृजन

रोली अभिलाषा ने कहा…

आभार आपका 🙏

मेरी पहली पुस्तक

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