हिसाब बराबर



मेरे कंधे पर चुप्पियाँ बिठाकर जब-जब वो बटोरने जाता है उसके कंधे के लिए तितलियाँ... मुझमें प्रेम दोगुना हो जाता है...प्रेम और प्रेम के लिए की गयी ईर्ष्या.

अब मैं भी थमा दिया करूँगी उसकी यादों को ख़ामोशी. कुछ भी हो प्रेम तो बने रहने देना है न!

17 टिप्‍पणियां:

रेणु ने कहा…

.प्रेम और प्रेम के लिए की गयी ईर्ष्या.-----
बहुत खूब अभिलाषा जी | प्रेम के साथ ईर्ष्या यूँ ही उग जाती है खरपतवार की तरह !है ना -- ?

Ravindra Singh Yadav ने कहा…

नमस्ते,

आपकी लिखी रचना ब्लॉग "पांच लिंकों का आनन्द" में गुरुवार 09 जुलाई 2020 को साझा की गयी है......... पाँच लिंकों का आनन्द पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!


दिगम्बर नासवा ने कहा…

बहुत जेरूरी है प्रेम का होना ....
अच्छा लिखा है ...

Roli Abhilasha ने कहा…

बहुत आभार श्रीमान जी 🙏

Roli Abhilasha ने कहा…

बहुत बहुत आभार मान्यवर 🙏

Roli Abhilasha ने कहा…

बिल्कुल सही कहा आपने प्यारी सखी...ईर्ष्या प्रेम का प्रकांड स्वरूप है. इसके अस्तित्व से इनकार ही कौन कर पाया. धन्यवाद आपका ❤️

Onkar ने कहा…

बहुत खूब

डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक' ने कहा…

सुन्दर गद्यगीत।

अनीता सैनी ने कहा…

मर्मस्पर्शी अभिव्यक्ति .
सादर

Rakesh ने कहा…

प्रेम से पगी रचना

Anuradha chauhan ने कहा…

बहुत सुंदर रचना

Roli Abhilasha ने कहा…

आभार आपका

Roli Abhilasha ने कहा…

बहुत आभार माननीय 🙏

Roli Abhilasha ने कहा…

आभार आपका

Roli Abhilasha ने कहा…

आभार 🙏

Roli Abhilasha ने कहा…

आभार सादर 🙏

Navin Bhardwaj ने कहा…

इस बेहतरीन लिखावट के लिए हृदय से आभार Appsguruji(जाने हिंदी में ढेरो mobile apps और internet से जुडी जानकारी )

मेरी पहली पुस्तक

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