तुम्हीं मेरे गुलज़ार हो!

जब मख़मल सी सुर्खियाँ

अम्ल के पार होती हैं

जब चाहत कलम में

तार तार होती है...

जब सरगोशियाँ न हों हवा में

और दिन पलट जाये

जब लफ़्ज़ का वरक़ पर

मरासिम ठहर जाये

जब तू न हो और मेरा वक़्त

बस तेरे साथ गुज़रे

जब तेरी आँखों में सब पढ़ें

मेरी ग़ज़ल के मिसरे

तब तो कहने देना तुम्हीं मेरे गुलज़ार हो

मेरी ज़िंदगी के चारों दिनों का एतबार हो!

15 टिप्‍पणियां:

Onkar ने कहा…

बहुत सुन्दर

डॉ. दिलबागसिंह विर्क ने कहा…

आपकी इस प्रस्तुति का लिंक 18-08-2021को चर्चा – 4,161 में दिया गया है।
आपकी उपस्थिति मंच की शोभा बढ़ाएगी।
धन्यवाद सहित
दिलबागसिंह विर्क

Ravindra Singh Yadav ने कहा…

आपकी लिखी रचना ब्लॉग "पांच लिंकों का आनन्द" पर गुरुवार 19 अगस्त 2021 को लिंक की जाएगी ....

http://halchalwith5links.blogspot.in
पर आप सादर आमंत्रित हैं, ज़रूर आइएगा... धन्यवाद!

!

Roli Abhilasha ने कहा…

बहुत आभार आपका!

Roli Abhilasha ने कहा…

आभार!

Roli Abhilasha ने कहा…

आभार माननीय!

Amrita Tanmay ने कहा…

मखमली अहसास । बहुत ही बढ़िया ।

डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक' ने कहा…

वाह-वाह!
बहुत सुन्दर!

आलोक सिन्हा ने कहा…

बहुत सुन्दर

मन की वीणा ने कहा…

बहुत सुंदर सृजन।

Roli Abhilasha ने कहा…

आभार!

Roli Abhilasha ने कहा…

धन्यवाद!

Roli Abhilasha ने कहा…

धन्यवाद!

Roli Abhilasha ने कहा…

आभार!

Meena sharma ने कहा…

जब लफ़्ज़ का वरक़ पर

मरासिम ठहर जाये

जब तू न हो और मेरा वक़्त

बस तेरे साथ गुज़रे।
बहुत सुंदर रचना।

मेरी पहली पुस्तक

http://www.bookbazooka.com/book-store/badalte-rishto-ka-samikaran-by-roli-abhilasha.php