मजूर

अन्न उगाया

सूत बनाया

बाग लगाये

घर बनाये

जीने से मगर मरने तक

मेरे हिस्से कुछ न आये

श्रमिक जीवन हाय तुम्हारी यही कहानी

सूखे आँसू, मिले न रोटी, नून और पानी

3 टिप्‍पणियां:

सुशील कुमार जोशी ने कहा…

मोदी जी नाराज हो जायेंगे :)

आलोक सिन्हा ने कहा…

बहुत सुन्दर

Onkar ने कहा…

बहुत सुन्दर रचना

मेरी पहली पुस्तक

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