To explore the words.... I am a simple but unique imaginative person cum personality. Love to talk to others who need me. No synonym for life and love are available in my dictionary. I try to feel the breath of nature at the very own moment when alive. Death is unavailable in this universe because we grave only body not our soul. It is eternal. abhi.abhilasha86@gmail.com... You may reach to me anytime.
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खोज नतीजे
हया की वो रात!
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फूट-फूट कर रोया था
वो पहली रात
उस नामुराद के लिए,
जब वो बोली थी
'तुम्हें हमबिस्तर होने का
तज़ुर्बा ही नहीं है';
उस कमरे में
एक ही बिस्तर पर
खिंच गयी थी तकिये की दीवार:
इस तरफ़ उसके अरमान
मुहाफ़िज़ बने बैठे थे
और दूसरी तरफ़ रातों की
रंगीनियां थी बेहिसाब,
न इज़्ज़त थी न अक़ीदत
बस तलब थी
आगे बढ़ते जाने की।
क़ुसूर उसका भी नहीं
कि वो जीना सीख गई,
पर क्या उसका था
कि वो कोठों की रवायतों से
अनजान क्यों था?
सुनते हैं तो कानों में
शीशे सा पिघलता है
मगर सौदायी
असभ्यता, कुसंस्कृति का तीर
बड़ी तेज़ चलता है।
फूट-फूट कर रोया था
वो पहली रात
उस नामुराद के लिए,
जब वो बोली थी
'तुम्हें हमबिस्तर होने का
तज़ुर्बा ही नहीं है';
उस कमरे में
एक ही बिस्तर पर
खिंच गयी थी तकिये की दीवार:
इस तरफ़ उसके अरमान
मुहाफ़िज़ बने बैठे थे
और दूसरी तरफ़ रातों की
रंगीनियां थी बेहिसाब,
न इज़्ज़त थी न अक़ीदत
बस तलब थी
आगे बढ़ते जाने की।
क़ुसूर उसका भी नहीं
कि वो जीना सीख गई,
पर क्या उसका था
कि वो कोठों की रवायतों से
अनजान क्यों था?
सुनते हैं तो कानों में
शीशे सा पिघलता है
मगर सौदायी
असभ्यता, कुसंस्कृति का तीर
बड़ी तेज़ चलता है।
जी नहीं पाऊँगी!
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तुमसे बिछड़ना और उस पर भी जीना,
तुम्हारे लिए ही सही पर वक़्त पर
अब ये अहसान मुझसे न होगा,
रोज़ पिलाते हो न
ये इंतज़ार का पिघलता शीशा,
अम्ल की बारिश मेरे मन पर
कर दो किसी रोज़;
तुम्हारी आहट का बुत
मैं खूँटी पे टाँग दूँ,
पर बोलो न कैसे
तुम्हारी याद ताक पर रख दूँ?
तुम्हारी मुस्कराहट तो
बारिश की गीली दियासलाई की तरह है,
दिखती भी फीकी सी है,
लाख मेहनत करो पर फुस्स:
कितनी दूर ले जाते हो
मेरी यादों की मिसाइल,
मेरी आँखें दीदार-ए-शबनम नहीं माँगती,
तुम्हारी जुस्तजू, तुम्हारे मौसम
नहीं माँगती;
इन्हें रौनकें लौटा दो
अपनी सुबहों की, हमारी रातों की,
अपने जोश और नशीली बातों की,
आओ न कि दर्द की छतरी में
कुछ देर ठहरकर दो-दो बूँद
ज़िन्दगी की पी लेंगे,
तुम्हारी टूटी मुस्कान, हमारा छूटा इंतज़ार
एक साथ जी लेंगे।
तुम्हारे लिए ही सही पर वक़्त पर
अब ये अहसान मुझसे न होगा,
रोज़ पिलाते हो न
ये इंतज़ार का पिघलता शीशा,
अम्ल की बारिश मेरे मन पर
कर दो किसी रोज़;
तुम्हारी आहट का बुत
मैं खूँटी पे टाँग दूँ,
पर बोलो न कैसे
तुम्हारी याद ताक पर रख दूँ?
तुम्हारी मुस्कराहट तो
बारिश की गीली दियासलाई की तरह है,
दिखती भी फीकी सी है,
लाख मेहनत करो पर फुस्स:
कितनी दूर ले जाते हो
मेरी यादों की मिसाइल,
मेरी आँखें दीदार-ए-शबनम नहीं माँगती,
तुम्हारी जुस्तजू, तुम्हारे मौसम
नहीं माँगती;
इन्हें रौनकें लौटा दो
अपनी सुबहों की, हमारी रातों की,
अपने जोश और नशीली बातों की,
आओ न कि दर्द की छतरी में
कुछ देर ठहरकर दो-दो बूँद
ज़िन्दगी की पी लेंगे,
तुम्हारी टूटी मुस्कान, हमारा छूटा इंतज़ार
एक साथ जी लेंगे।
ये तड़प बार-बार सुन लो!
बस मेरी पुकार सुन लो
दर्द में है प्यार सुन लो
आओ न इधर तो देखो
ये तड़प बार बार सुन लो
दर्द में है प्यार सुन लो
आओ न इधर तो देखो
ये तड़प बार बार सुन लो
वक़्त की बूंद पर नाम लिखूंगी तेरा!
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तुम्हारे बग़ैर मेरी रात नहीं गुजरती है,
मेरे बिना तो तुम्हारे
दिन हफ़्ते महीने निकल जाते हैं,
मैं समय की हर बूँद पर
तुम्हारा बस तुम्हारा अक्स देखती रहती हूँ
और तुम
वक़्त की सिलवटों पर
अपनी पदचाप भी नहीं छोड़ते;
आ जाओ न कि तुम्हें
मेरी मायूस शामों का वास्ता,
मेरे फिक्र-ए-ग़म में,
ग़म के तन्हा सफ़र में,
सफ़र की मुक़द्दस मुस्कान में
बताओ न
कि मैं कब दर्द की उल्टी गिनती गिनूं,
या मैं तुम्हारे बग़ैर जियूँ
और बस जीती रहूँ।
अपने लिए न सही, मेरे लिए आ जाओ,
साथ होते हुए भी जो गुम गया
सुनो, आते हुए वो लम्हा भी ले आओ।
मुझे वो हर सहर उधार दे
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सरे-शाम से लिये चिराग,
तेरी याद में मैं बेहिसाब,
बैठी हूँ तेरे सिजदे को,
मुझे एक रात नवाज़ दे।
कहाँ है मुझको ये बता,
सुलग रही है मेरी जफ़ा,
फिक्र है मुझे बस तेरी,
तू कहीं से तो आवाज़ दे।
तेरे नूर को मैं चूम लूँ,
प्यारा है मेरा रहनुमा,
वरक़-वरक़ सिमट सकूँ,
बस तेरे लफ्ज़ सँवार दे।
न छाँव अपनी दे मुझे,
न नाम का तू अक्स दे,
जो शाम तुझमें हो घुली,
मुझे वो हर सहर उधार दे।
आज की रात मुझे.....
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सुनो,
जो कल दो पन्नों वाली मुलाक़ात लिखी थी न
उसमें कुछ रह सा गया है,
अभी अपनी उस दिन वाली तकरार नहीं लिखी
और हाँ इश्क़ के फफोलों पर ठंडे मरहम वाली बात
वो भी तो नहीं लिखी।
पहले तो सब मुझे कहते थे दीवानी तुम्हारी
और तुम हर बात में पगली,
मगर अपना भी मौसम बदल गया है,
इश्क़ की दुकान में भाव ऊंचे हो गए हैं,
अब कोई नहीं कहता
एक लड़की थी दीवानी मगर पागल;
अब सब कहते हैं न
मैं मज़मून हूँ मोहब्बतों का,
दर्द के गुश्ताक़ दरिया में बेज़ार बहता हुआ;
क्या समझूँ इसे मैं
बेपनाह समंदर में डूबने की हौसला-अफ़ज़ाई
या तुम्हारे नाम की आयतों का कलमा,
क्या है मेरा मुक़द्दस कल
दिन से मुतमइन मगर रोशनी से बेज़ार:
अच्छा बताओ तो सही
इस इबारत को क्या नाम दूँ?
सुनो तुम जल्दी आओ न!
मन कुछ भारी सा हो रहा
नींबू पानी और मोहब्बत की एन्टी डोज
दोनों जरूरी हैं मेरे लिए
पर आते वक्त नुक्कड़ से
अपनी पुरकशिश मुस्कराहट लाना मत भूलना
आज की रात मुझे ये फलसफा लिखना है।
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