स्त्री
दोपहर को धूप होती है
शाम को परछाई
और रात में अँधेरा.
हर बीता हुआ पुरुष
अपना पहर बदलता रहता है
और लंबा आराम लेता है
अँधेरा गहराते ही,
स्त्री आँखों की पुतलियों में सपने बाँधे
करवटों में रात निकाल देती है
सुबह के अलार्म की प्रतीक्षा में.
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